Book Title: Aatmkatha
Author(s): Satya Samaj Sansthapak
Publisher: Satyashram Vardha

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Page 289
________________ नया संसार [ २:७७.. पर :असुधारक और अयोग्य सम्बन्ध न करूंगा। . इस लम्बे समय में काफी अनुभव हुए । मनुष्य के वेष में कैसे कैसे शैतान छिपे रहते हैं इसके भी अनुभव हुए । एक भाई जो विद्वान थे एक स्त्री के साथ मेरी शादी कराना चाहते थे जिसके साथ उनका अनुचित सम्बन्ध था पर जिसे वे अपनी बहिन बताया । करते थे। । कुछ समय बाद तो मेरे पास तार आया कि शादी के लिये जल्दी आइये । तार कुछ ऐसे बेमौके से आया था कि उसे पढ़ते ही निश्चय हो गया कि बाई गर्भवती है और तार भेजनेवाले ‘भाई को मैंने लिव दिया कि मुझे तो उस बाई के गर्भवती होने का संदेह है इसलिये मैं पूरा खुलासा होने तक नहीं आ सकता । . तार भेजनेवाले भाई ने पहिले बड़ा कड़ा उलहना लिखा : पर दो माह बाद उनने माफी मांगी, क्योंकि उस बाई का गर्भ बिलकुल प्रगट हो गया था। फिर तो.वे मित्र भी मेरी तारीफ करने : लगे जिनने मेरे मुँह से यह बात सुनकर नाराजी प्रगट की थी कि वह बाई. गर्भवती है। इससे पता लगता है कि पुनर्विवाह के मार्ग में कितनी कठिनाई है। समाज का अन्तस्तल इतना: सड़ गया है और रूढ़ियों के कारण उस सड़ाद में हमारी नाक. ऐसी चमरनाक हो गई है कि . हमें उस दुर्गध का भान ही नहीं होता है। पर जो स्वच्छता चाहता है उसकी परेशानी है। समाज शुद्धि नहीं चाहता अशुद्धि की गुप्तता. या अदृश्यता चाहता है, पर क्या प्लेग के कीड़े इन मोटी आँखों से न दिखने से प्लेग चला जायगा ? खैर ।

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