Book Title: Aatma hi hai Sharan
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

View full book text
Previous | Next

Page 213
________________ जैनभक्ति और ध्यान हमने उन्हें फोन किया और सम्पूर्ण स्थिति समझाकर इस बात के लिए राजी करने का प्रयास किया कि वे आधा समय जैना के सम्मेलन को दे दें। यद्यपि वे कार्यक्रमों का भरपूर प्रचार कर चुके थे; अतः कठिनाई तो थी ही, तथापि उन्होंने हमारी बात नहीं टाली । 207 इसप्रकार जैना के सम्मेलन का कार्यक्रम बन गया और हम दो दिन मियामी में रुककर सान्फ्रांसिस्को को रवाना हो गये । मियामी में तीन प्रवचन हुए, जिनमें एक प्रवचन आत्मानुभूति पर और दो प्रवचन उत्तम क्षमा, मार्दव और संयम धर्म पर हुये । मियामी में श्री भूपतभाई शाह को हमारे साहित्य को अमेरिका व यूरोप के देशों में प्रचारित करने की भावना इतनी प्रबल हुई कि उन्होंने स्वयं की प्रेरणा से ही हमारे जयपुर कार्यालय को धर्म के दशलक्षण, क्रमबद्धपर्याय, नो दाई सेल्फ, अहिंसा, तीर्थकर भगवान महावीर आदि पुस्तकों के अंग्रेजी संस्करणों की एक-एक हजार प्रतियाँ भेजने का लिखित आदेश भेजा और उन स्थानों के पते भी लिख कर भेजे, जहां वे यह पुस्तकें भेजना चाहते हैं। उनका लिखना है कि पुस्तकें सीधी भेज दी जाए और बिल उन्हें मियामी भेजा जाए। इसीप्रकार उन्होंने कुछ गुजराती पुस्तकें भी जगह-जगह भिजवाई हैं। सान्फ्रासिस्को में जैना के सम्मेलन में हम मात्र २८ घंटे ही रहे, पर इन अट्ठाईस घंटों में ही हमारे विभिन्न विषयों पर चार व्याख्यान हुए; एक मुख्य हॉल में और तीन विभिन्न कक्षा हॉलों में । सभी व्याख्यान प्रभावक रहे । यहाँ पहुँचकर हमें अनुभव हुआ कि सम्मेलन का कार्यक्रम निरस्त करना सही नहीं था; क्योकि यहाँ अनेकानेक पूर्व परिचित प्रमुख लोगों का समागम तो हुआ ही; अनेकानेक नये लोगों से मिलना भी हुआ । इस अवसर पर अनेक नये आध्यात्मिक श्रोता भी तैयार हुए ।

Loading...

Page Navigation
1 ... 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239