Book Title: Aap Kuch Bhi Kaho
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 24
________________ १६ [ आप कुछ भी कहो अंगुली में अब भी कुष्ठ शेष है। यदि मेरे मिटाने से मिटता तो मैं इसे शेष क्यों रखता ?" इस सम्पूर्ण संवाद को सुन रही सम्पूर्ण जनता के मुख से एक साथ निकला - "धन्य है, धन्य है, सच्ची साधुता इसे कहते हैं।" ___ सम्राट सहित सबसे हृदय गद्गद हो गये। आलोचकों के हृदय भी बदल गये। उनमें से एक बोला - "नकली साधु होता तो सहज सम्पन्न इस प्रसंग से अपने को महान् सिद्ध करने का लोभ संवरण नहीं कर पाता, चाहे उससे मूल जिनधर्म की हत्या ही क्यों न हो जाती ?" दूसरा कहने लगा - "आप सत्य कहते हैं, यश के लोभियों ने ही धर्म की मूल भावना को विकृत कर रखा है।" तीसरा कहने लगा - "ऋषिराज ने कुछ भी कहा हो, पर यह मूर्ख जगत उनके नाम से इसे चमत्कार के रूप में ही प्रसारित करेगा।" बाद की बात तो बहुत दूर, उसी समय एक अन्ध भगत ने उठकर ऋषिराज के चरण छुए और ऊँचे स्वर में कहा - "आप कुछ भी कहो, हम तो इसे आपका चमत्कार ही मानेंगे।". अन्धश्रद्धा अंधश्रद्धा तर्क स्वीकार नहीं करती। यही कारण है कि अंधश्रद्धालु को सही बात समझा पाना असंभव नहीं तो कष्टसाध्य अवश्य है। यदि वह तर्कसंगत बात को स्वीकार करने लगे तो फिर अंधश्रद्धालु ही क्यों रहे? अंधश्रद्धालु को हर तर्क कुतर्क दिखाई देता है । इष्ट की आशा और अनिष्ट की आशंका उसे सदा भयाक्रान्त रखती है। भयाक्रान्त व्यक्ति की विचारशक्ति क्षीण हो जाती है। उसकी इसी कमजोरी का लाभ कुछ धूर्त लोग सदा से ही उठाते आये हैं और उठाते रहेंगे। - सत्य की खोज, अध्याय ७, पृष्ठ ३६

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