Book Title: Aadikal ka Hindi Jain Sahitya
Author(s): Harishankar Sharma
Publisher: Harishankar Sharma

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Page 736
________________ ३७०- ४२४ ६०४ डिव बधाननान ढाल राग देवाय । यह पद भी १३, १३ मात्राओं का दूसरा रूप है। पढावु मात्रा १६, १२ ( राग वसंत) ४२९- ४४० पद मात्रा १४, १४ (राम वसंत) ढाल विवाहला, इस प्रकार विविध रागों में कवि ने इन कड़ियों को गाने का निर्देशन भी साथ ही दे दिया है इससे स्पष्टहोता है कि कवि का संगीत ज्ञान भी वास्त्रीय तथा असाधारण था । छंदों के रूप में प्रस्तुत कृति बड़ी महत्वपूर्ण है कवि ने इसी प्रकार कई मौलिक छेदों व विभिन्न राग के साथ उन्हें गाने का सुझाव दिया है। वस्तुत: जो भी छेद हमें इस रचना में उपलब्ध हुए है, उन पर पर्याप्त प्रकाष डाला गया है। भाषा की दृष्टि से यहरचना भी त्रिभुवन दीपक प्रबन्ध, पंच पंडव चरित राजु क्या नेमिनाथ फायु की ही मातवीं शताब्दी की सरल हिन्दी है। तत्सम पदों का प्राधान्य है। प्राचीन राजस्थानी या गुजराती के विविध शब्द मिल जाते हैं जो साधारण भाषा प्रवाहपूर्ण और प्रासादिक है। वर्तमान गुजराती की प्रारम्भिक भूमिका इस कृति की भाषा से मिल सकती है। अप की लाथमिकता इन कृतियों में कभी कठिनाई से मिलती है और उसके बाथ तत्सम प्रयोगों ने सम इच्छता को समाप्त कर दिया है। एवर्ग अनेक उदाहरण उपर दिए गए है। समस्याएं:- ठोक या काव्य होने के साथ साथ रचना में एक महत्व गुम उसमें 1. The detailed analyis of the metrical form used in this poem is of great immprtant in painting out how at the basis there were matra metres which becaneseose as the musical considerations began to enter its form. The syllables of one matra or two matras did not remain rigidly so and were lengthened eut short ened aecording to the oal or giving requirements. Even the pads has originally at the basis the well known matra forms. The musical syllables are added and then the peetie narrations were composed by taking Yals and Deshi w.th out any consideration of Matra metre basis. All these matters concerning the ohages of metrical forms through AP... to g. Akhyan Poona and Pads are of great Importance 6.0.8.0 XVLLI PAG-371.

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