Book Title: Aadhunikta aur Rashtriyata
Author(s): Rajmal Bora
Publisher: Namita Prakashan Aurangabad

View full book text
Previous | Next

Page 37
________________ नैतिकता ३५ जानना आवश्यक है। यह नैतिक विधान एक दृष्टि से समाज विशेष के सभ्यता और संस्कृति का बोध करनेवाला रूप हैं। एक स्थान पर जो बातें नैतिक मानी जाती हैं दूसरे स्थान पर वे एकदम अनैतिक हो सकती हैं और ठीक इसके विपरीत भी सत्य है । स्थान के साथ साथ समय समय की नैतिकता भी अन्तर मिलेगा । एक ही देश में पंद्रहवीं शताब्दी में जो सामाजिक मूल्य थे वे सोलहवी में बदल गये और जो सोलहवी में थे वे आज बीसवी शताब्दी में नहीं हैं । अतः हम यहाँ कह सकते हैं कि नैतिकता देश, काल, समाज और राष्ट्र से सापेक्ष हैं। नैतिक मूल्यों के अध्ययन के लिए इन तत्त्वों का अध्ययन करना भी आवश्यक है । आज तक का इतिहास इस बात की साक्ष देता है कि विजय उसी की हुई, जिसके पास शक्ति है और जिसके पास शक्ति है उसी की तूती बोलती है और उसी के बनाये नियम चलते हैं । वही विधान है और वही कानून है । इसीलिए किसी विद्वान ने ठीक ही कहा कि... 'नैतिकता और कुछ नहीं वह शक्तिशालियों का स्वार्थं है ।' अपनी इच्छा से जिसे वे सत्य कहें, वह सत्य है और जिसे वे असत्य कहें, वह असत्य है, जिसे वे ठीक कहें, वह ठीक है और जिसे वे गलत कहें, वह गलत है । नियंत्रण का अधिकार समाज के अल्पसंख्यक विशिष्ट वर्ग के हाथ में ही रहा है । जान ड्यूई ने इस सम्बन्ध में लिखा है... 'सत्ताधिकारी व्यक्तियों ने नैतिक नियमों को वर्ग - प्रभुता का कितना ही माध्यम क्यों न बना लिया हो, कोई भी वह सिद्धान्त जो सुचि - न्तित उद्देश्य को नियम के उद्भव का कारण बताता है, मिथ्या है। अस्तित्व में आ गई परिस्थितियों से लाभ उठा लेना एक बात है, पर भविष्य में लाभ उठा लेने के उद्देश्य से उनका निर्माण करना सर्वथा दूसरी बात है ?' ' यह कहने का तात्पर्य केवल इतना ही है कि नैतिक नियमों का आरम्भ से अब तक जो विकास हुआ है और अब भी उसका जो रूप बदल रहा है, उसमें मानव - प्रकृति के रहस्योद्घाटन का प्रमुख हाथ है । आरम्भ में शक्तिशालियों ने, चाहे जो नैतिक विधान बनाया हो वह समय के अनुसार मानव - प्रकृति के अनुकूल न होने पर बदलता गया । जॉन ड्यूई का कथन - - " जब तक नैतिकता की मानव - प्रकृति से और दोनों की परिवेश से अखण्डता स्वीकार नहीं कर ली जाती, तब तक हम जीवन की विकटतम एवं गहनतम समस्याओं से निपट लेने में विगत अनुभव की सहायता से वंचित रहेंगे। ठीक और १. मानव प्रकृति और आचरण - जॉन ड्यूई, अनवादक : हरिश्चन्द्र विद्यालंकार - पृ, २.

Loading...

Page Navigation
1 ... 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93