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अध्याय ]
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प्राचार्यश्री-इतनी देर से कैसे पाये ?
किसान - दिन में मेरा लड़का तथा स्त्री प्रा गये थे। उन्होंने कहा तुम भी जा ग्राम्रो। सो खेत मे सीधा ही श्रापके दर्शन करने पाया हूँ महाराज !
आचार्यश्री - पर केवल दर्शन करने से क्या होगा ? क्या तमाखू पीते हो ?
किसान पीता हूँ महाराज! बचपन से ही पीता हूँ ।
भगवान् महावीर और बुद्ध की परम्परा में
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प्राचार्यश्री हाथ दिखाओ तो तुम्हारे ? देखो इनमें तमालू के दाग बैठ गये। धोने से भी नहीं उतरते, तो क्या पेट में ऐसे दाग नहीं बैठेंगे? और सच तो यह है कि तमाखू मे जीवन में भी दाग बैठ जाता है। यह अच्छी नहीं है भाई !
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किसान - तो क्या छोड़ दूं इसे ?
आचार्यश्री-हाँ, जरूर छोड़ दो।
किसान तो तो भाज से ही तमालू पीने का त्याग है।
आचार्यश्री पर निभाना पड़ेगा इसे ? केवल त्याग करने से ही कुछ नहीं हो जाता ।
किसान- इसमें क्या गक है। प्राण बने जायें, पर प्रण नहीं जायेगा।
मानव के प्रात्म-विश्वास का यह एक जीता-जागता चित्रण है।
इतना सब कुछ होते हुए भी प्राचार्यश्री अपने-आपको एक अकिंचन भिक्षु मानते हैं। उस समय जेठ का महीना था। जोधपुर से लाइन की ओर विहार हो चुका था । प्राँधियां चलने लगी थीं, अतः श्राचार्यश्री का सारा शरीर अलाश्यों से भर गया था। बार-बार खुजली पानी भी एक साधु हैजलीन' लाये और निवेदन किया इसे लगाने में आपको भाराम रहेगा। माचार्यश्री ने कहा- भाई! यह तो अमीर लोगों की दया है। हम तो अकिंचन फकीर हैं। हमारे ऐसी दवाइयाँ काम नहीं आ सकती ? हमारी दवाई तो जव वर्षा पायेगी और ठण्डी-ठण्डी हवा चलेगी तो अपने-आप हो जायेगी ।
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प्राचार्यश्री ने जहाँ लाखों लोगों की श्रद्धा पाई है, वहाँ अनेक लोगों के विरोध को भी उन्हें सहन करना पड़ा है । पर उन्होंने इसे इस प्रकार हँस कर टाल दिया जैसे मानो भगवान् महावीर और बुद्ध की भ्रात्मा ही उनमें बोल रही हो।
यह जोधपुर की घटना है। दीक्षा प्रसंग को लेकर विरोध बातूल प्रबल वेग से बह रहा था। कुछ लोगों ने विरोध में कोई कमी नहीं रखी थी। अतः उन्होंने एक दिन उस सड़क को, जिससे होकर प्राचार्यश्री जंगल जाते थे, पोस्टरों से पाट दिया। थोड़े-थोड़े फासलों पर पोस्टर चिपके हुए थे। उस विरोध- बेला में भी प्राचार्यत्री के मघरों से स्मित फूट रहा था। बोले इन लोगों ने कितने पोस्टर चिपकाएं है; पर एक कमी इन्होंने रख दी। यदि पोस्टर नजदीक नजदीक लगाये होते तो हमारे पैर तारकोल से गन्दे होने से बच जाते । सचमुच ऐसी बात कोई महापुरुष ही कह सकता है।