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________________ ( ७) मय गाजा बाजा से वापिस नगर में ले जाने लगे उस वक्त खरसरों ने अपना पगलिया उठाया तब जाकर लोगों को मालुम हुआ और पूछा कि यह पगलिया किस का है और कहाँरक्खाजायगा ? उत्तर मिला कि यह पगलिया हीरावाड़ी के मन्दिर की एक कोठरी में बन्द था वह है और हीरावाड़ी के मन्दिर में रखा जायगा । बस इस बात की गरमागरम चर्चा होने लगी कि श्री संघ की सम्मति से रक्खे हुए पगलिया बिना श्री संघ की इजाजत बिना कमेटी से चाबी लाये खरतरों ने पगलिया क्यों निकाल लिया ? और बिना श्री संघ की सम्मति के हीरावाड़ी के मन्दिर में पगलिया क्यों रखा जाता है ? जब तक श्री संघ एक मत न हो जाय तब तक पगलिया हीरावाड़ी में किसी हालत में नहीं रखने देंगे। इस बात को खरतरा अच्छी तरह से समझलें। कई शान्ति प्रिय खरतरे कहने लगे कि हम लोगों को तो इस बात की खबर ही महों है कि पगलिया कब और किसने निकाला ? पर विघ्न संतो. षियों को तो किसी न किसी प्रकार से संघ में कुसम्प पैदा करना ही था। इस बात पर बहुत कुछ वाद विवाद हुआ। आखिर श्रीमान इन्द्रचन्दजी खजानची ने खरतर० साध्वीजी कनकधीजी को समझा बुझा कर वह पगलिया खरतर गच्छ के कालीपोल के उपासरा में रखवा देना मंजूर किया और उस दिन दोनों ओर शान्ति हो गई । यहाँ तक तो दादाजी की सेवा पूजा भक्ति जयन्ति रात्रि जागरण और इन कार्यों में टीप चन्दा देने में क्या तपा क्या खरतरा सब मूर्तिपूजक समाज शामिल था। इतना ही क्यों पर इसमें विशेष खर्चा तपा गच्छ वालों की ओर से ही होता था। मुनि श्री ज्ञानसुन्दरी महाराज की शान्ति और कार्य Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034563
Book TitleNagor Ke Vartaman Aur Khartaro Ka Anyaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktisagar
PublisherMuktisagar
Publication Year
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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