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________________ ( ३४ ) हरिसागर के पापों का भंडा फोड़ . मेरे प्यारे बन्धुओ ! मुझे लिखते हुए शर्म श्राती है और जो लेख का प्रत्युत्तर नहीं देता हूँ तो हरिसागरजी की असत्यता सत्यता के रूप में परिणत होने का लोभ है; इसलिये मेरा यह कर्तव्य हो गया है कि उनकी सारी पाप लीलाओं का भंडा फोड़ कर दिया जाय और जैन समाज को कुम्भकरणी निंद्रा से जगा दिया जाय । अब सावधान होकर हरिसागरजी की पाप लीलाओं का अहवाल सुनियेगा। मेरे प्यारे मित्र हरिसागरजी, आखिर में तुमने अपनी पाप लीलाओं का भंडा मेरे हाथों से ही फुड़वाया । खैर ! तुम्हारी ही इजाजत ने मुझे प्रेरित किया है तो अब खूब मजा लुटियेगा | क्या हरिसागर तुम्हें इस लेख के प्रारम्भ में ही 'मुक्तिसागर मेरा शिष्य है।' ऐसा लिखते हुए तुमको दूसरे महात्रत का कुछ भी खयाल न रहा ? प्रारम्भ में ही मुरसादि का लिवास लगाके प्लेट फार्म पर पेश होगये । भले आदमी प्रारम्भ में तो सत्यता दिखलानी थी। लेकिन सत्यता का पार्ट भेजा ही नहीं होगा, इसलिये ही असत्यता को आगे ढकेल दिया है। खेद, हरिसागरजी के ख्याल में है या नहीं, मैं मेरे प्राथमिक लेख में लिख चुका था कि हरिसागर तुमने मुझे कब दीक्षा दी थी और किस शहर में किस संघ के आगे दी थी ? सो जाहिर करना । लेकिन Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034563
Book TitleNagor Ke Vartaman Aur Khartaro Ka Anyaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktisagar
PublisherMuktisagar
Publication Year
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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