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________________ ( १३ ) - "कौन है मुझे उठाने वाला मैं तो यहीं रहूँगा यदि कोई मेरा पगलिया उठाने का नाम तक भी लेगा तो मैं उनसे समझ लूंगा इत्यादि ". बस ! फिर तो था ही क्या लोगों ने हा-हो मचा दिया और कहने. लगे कि बस, दादासाहब खुद परचा दे दिया अब तो पगलिया हीरावाड़ी के मन्दिर में ही रहेगा। इतना कह कर सब लोमउठ कर चले गये और बाहर जा कर इस बात को चारों ओर फैला दी कि दादाजी ने मुनीचन्दजी के शरीर में आकर परचा दे दिया है कि मैं तो मन्दिर में ही रहूँगा कोई मुझे उठाने का नाम तक भी नहीं ले इत्यादि । इस बात की शहर में खूब चर्चा. होने लगी और कई कई लोग यह भी कहने लगे कि: १-यह बात बिलकुल कल्पित बनावटी है, क्योंकि दादाजी. जैसे महान पुरुष श्री संघ में फूट कुसम्प डलवा कर एक क्षणमात्र भी मन्दिर में नहीं ठहरे।। २-अरे दादाजी जीवित थे उस समय भी रात्रि दिन मन्दिर में ठहरने में महान आशातना समझते थे तो अब वे कैसे ठहर सकते हैं ? यह तो एक खरतरों की कारस्तानी है। ___ ३-भाई ! दादाजी के लिये श्री संघ में इतना बड़ी दादाबाड़ी बना रखी है तो दादाजी मन्दिर में बैठ कर श्री संघ में केश पैदा क्यों करवाते हैं। ४-अरे सुनो तो सही दादासाब को सब गच्छ वाले मानते पूजते हैं तो दादाजी एक खरतर गच्छ वालों को अपने भक्त मान कर दूसरे गच्छ वालों को कभी दूर नहीं हटावेंगे। यह तो दादाजी के नाम पर खरतरों का जाल है। - .. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034563
Book TitleNagor Ke Vartaman Aur Khartaro Ka Anyaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktisagar
PublisherMuktisagar
Publication Year
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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