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________________ ( १२ ) " : इस बात की शहर में काफी चर्चा होने लगी कोई कहता है कि खरतर लोग बहादुर हैं कि श्री संघ की कुछ परवाह न कर 'पगलिया मन्दिर में रख ही दिया। इतना ही क्यों पर इन्होंने तो अपने परमेश्वर की मूर्तियों के लिये आशातना की भी दरकार नहीं रखी । तब कई लोग कहने लगे कि इसमें खरतरों की क्या बहादुरी है कि तपागच्छ वाले अग्रेसर पौषध व्रत में थे इस हालत में तस्करों की भांति गुपचूप पगलिया रख आये। ऐसा काम तो एक विधवा औरत भी कर सकती है। पर नामवरी तो तपागच्छ वालों की ही कही जा सकती है कि उन्होंने खरतरों से तीन गुना होते हुए भी इतनी शान्ति रखी। शहर की इन बातों को कुछ समझदार खरतरों ने सुनी तब उनकी अकल ने सोचाया कि अपन लोगों ने विघ्न संतोषियों के धोखे में आकर यह कार्य अच्छा नहीं किया क्योंकि जब सब गच्छ वाले दादाजी की सेवा पूजा भक्ति करते हैं तो सब को नाराज एवं दूर कर दादाजी के पग लयों को मन्दिर में स्थापन करने में क्या लाभ है अतएव सब की सम्मति पूर्वक ही कार्य करना अच्छा है। जो लोग झगड़ा करवाने में है उनके देने लेने में तो कुछ है नहीं। जितने काम पड़ते हैं ज्यादा खर्चा तपागच्छ वाले ही देते हैं इत्यादि विचार कर फागुण सु. १५ के दिन खरतर गच्छ वाले सब काली पोल के उपासरे जहाँ साध्वियाँ ठहरी हुई थीं एकत्र हुए, और वे इस निर्णय पर आने का प्रयत्न करने लगे कि जो समदड़ियाजी ने पहिले से बतलाया था। जब यह काम तय होने में आया इतने में तो मुनीचन्दजी वछावत शरीर को मरोड़ कर बोल उठा कि .. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034563
Book TitleNagor Ke Vartaman Aur Khartaro Ka Anyaya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMuktisagar
PublisherMuktisagar
Publication Year
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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