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________________ (८८) होवे ? भगवान ने कहा हे गोतम जैसे साधुनों को प्रायश्चित्त आवे उसी तरह श्रावक को भी प्रायश्चित्त होवे। इससे भी यह साफ साफ साबित होता है कि साधु या श्रवण प्रत्येक को यथायोग्य जिन प्रतिमा की पूजा, दर्शन और वन्दनो करनी चाहिये। एवं महानिशीथ सूत्र में लिखा है कि "काउपि जिणाय पणेहिं मंडियं सव्वमेयणीबटुं दाणाई चतुष्केणं सढो गच्छेज्जा अचुतं जव”। ____ भावार्थः-यदि कोई श्रावक जिनमन्दिर करावे तो वह अच्युत नाम १२ में देवलोक में जावे, अपि शब्द से दान, शील, तप और भावना से भी १२वें अच्युत देवलोक में जावे"। इससे भी जिनमन्दिर करना और जिनप्रतिमा की पूजा सिद्ध होती है। इसी तरह भगवती सूत्र के २० शतक : उद्देश में जंघाचारण मुनि ने प्रतिमायें पूजी हैं, यह खास भगवान् महावीर ने गोतम से कहा है। ___ और 'रायपमेणी सूत्र' में सूर्याभदेव के जिन प्रतिमा को पूजने का पाठ है जैसे ...... . . . . . . . देवाणुपियाणं सुरियाभे विमाणे सिद्धायणं अवसयं जिणपडिमाणं जिणुस्सेह पमाणतेमाणं सणिखित्तं चिट्ठति, सभाएणं सुहम्मापणं माणवत्ते, चेइए खंभे परामए गालवटुसमुगाए घहउजिगराई कहाउसणि गखिता उचिट्ठति ताउणं देवाणुपियाणं प्रणरो हि च बहुणं वेमाणियाणं देवाणय देवीणए प्रचापिज्झा ए जाप वंदाणिज्झा प्राणमसणिज्झायो Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034562
Book TitleMurti Puja Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGangadhar Mishra
PublisherFulchand Hajarimal Vijapurwale
Publication Year1947
Total Pages94
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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