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________________ ( =७ ) अनेकों प्रमाण हैं और भी सुनों-मगवती सूत्र के १० शतक ४ उद्देश में लिखा है कि "नन्नथ्प अरिहन्ते वा अरिहन्त चेइयाणि वा भावी पो अणगारस्ल वा विस्लाए उटुंठे उप्पयंति जाव सोहम्मो कप्प इति । भावार्थ:- जब चमरेन्द्र सौधर्म देवलोक में गया तब एक अरिहन्त का दूसरा चैत्य जिन प्रतिमा का तीसरा साधु का शरण लेकर गया । अब आप विचारिये कि यदि चैत्य का अर्थ साधु या मुनि होता तो यहां अलग नाम श्रणगार क्यों कहते ? अतः चैत्य का अर्थ जिनमन्दिर हो है । और भी सुनो, महाकला सूत्र में लिखा है कि www 6. 'से भयवं समणोवासगस्स पोसहशालाए पोसहिए पोस हवं मयारी किं जिणहरं गच्छज्जा, हंता गोयमा गच्छेजा सि, भगवं केणवेणं गच्छेज्जा, जे कोइ पोसइसालाए योसहवं भयारी जो जिसहरे न गच्छेज्जा तो पायच्छित्तं हवेज्जा, गोयमा जहां साहु तहां भणिष्पवं झटुं श्रह वा दुवाल सं पायच्छित्त हवेज्जा । पूछा कि हे भगवन् ! पोषध - व्रत ब्रह्म भावार्थ - भगवान् महावीर से गौतम ने श्रावक पोषधशाला में पोषध में रहा हुआ चारी जिनमन्दिर को जावे क्या ? भगवन ने कहा, हां, जावे, गोतम ने पूछा, भगवन् ! किस वास्ते जावे, भगवन् ने कहा, गोतम ! ज्ञान, दर्शन और चारित्र के लिये जावे । गोतम ने पूछा, हे भगवन् ! पोषधशाला में रहा हुआ पोषघत्रत ब्रह्मचारी जो कोई श्रावक जिनमन्दिर में नहीं जावे तो क्या उसे प्रायश्चित Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034562
Book TitleMurti Puja Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGangadhar Mishra
PublisherFulchand Hajarimal Vijapurwale
Publication Year1947
Total Pages94
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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