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________________ ( ७६ ) कपड़ों में लपेट कर चार पाई या चौकी पर रखते हैं और उसकी समाप्ति होने पर भोग पाते हैं और उसके सामने धूप “आदि जलाकर घड़ी-घण्टे बजाते हैं और भी कई तरह के राग, शब्द आदि उसके सामने बोलते हैं एवं और भी अनेक तरह से उसकी पूजा करते हैं, तब फिर आप मूर्ति पूजा से अलग कैसे रहे ? अगर यदि मूर्ति जड़ है तो ग्रन्थ साहिब भी कोई चेतन नहीं हैं, वे भी तो शिफ कागज और स्याही के संयोग से ही बने हुये हैं जिसके नीचे रखने वाली चारपाई को श्राप लोग "मंजा साहिब के नाम से कहते हैं, इसलिये अब श्राप ही खुद शोच समझ कर कहिये कि आप लोग जड़ की पूजा को किस तरह करते हैं या उसका कदर किस प्रकार करते हैं। सरदार--महात्मन् ! वह गुरुओं की वाणी है, इसलिये हम लाग उसका सम्मान और पूजा करना आवश्यक समझते हैं। दादाजी-अजी साहय, आप लोग जैसे गुरुओं की वाणी का या गुरु साहब का सम्मान और पूजा करते हैं, उसी तरह मूर्ति पूजक भी परमेश्वर की मूर्ति का सम्मान और पूजा करते हैं, और आप लोग जब गुरुओं और गुरुओं की वाणी की प्रशंसा करते हैं तब फिर आप लोगों को परमात्मा की मूर्ति का सम्मान और पूजा अवश्यमेव करनी चाहिये, क्योंकि गुरुओं की वाणी से परमात्मा की मूर्ति कहीं अधिक पवित्र है, इसलिये आपको चाहिये कि परमात्मा की मूर्ति की पूजा और संमान प्रतिदिन यथा समय किया करें, और सबसे अधिक आश्चर्य की Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034562
Book TitleMurti Puja Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGangadhar Mishra
PublisherFulchand Hajarimal Vijapurwale
Publication Year1947
Total Pages94
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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