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________________ . (३१) सेवा केली ? और यदि किसी विद्वान् के शरीर में जीवात्मा को रहने से उनकी सेवा करनी श्राप की राय में ठीक है तो विश्व व्यापक ईश्वर की पत्थर आदि की मूर्तियों में भी विद्यमान रहने के कारण मूर्ति-पूजा ईश्वर-पूजा ही सिद्ध होती है, इसलिये उस विद्वान के जड़ शरीर की सेवा की अपेक्षा से ईश्वर की प्रतिमा की सेवा अनन्तगुण अधिक फल देने वाली सिद्ध होती है।। आर्य-महाराज, मूर्ति जड़ है और वह तो निर्माण कर्ताओं के हाथों का कौशल है। कोई भी मूर्ति हम को अच्छा या बुरा कुछ भी उपदेश नहीं देती, किन्तु विद्वान् साधु सन्तों से तो हमें प्रत्यक्ष सुन्दर धार्मिक उपदेश मिलता है। फिर आप विद्वान् के शरीर से जड़ मूर्ति की महत्ता का विशेष वर्णन क्यों करते हैं। दादाजी-महाशय, यदि आपको कोई अच्छे उपदेशक मिल जाय और वे सार्वजनिक हित उपदेश भी आपको दें, मगर आप उसे कुछ भी अपने ध्यान में नहीं लावे तो फिर उन अच्छे उपदेशों से क्या ? शास्त्र कहता है कि " मन एव मनुष्याणां कारणं बन्ध-मोक्षयोः" अर्थात् संपार में बन्धन और मुक्ति (छुटकारा) का कारण मन ही है। इसलिये जैसे श्रापने अच्छे उपदेशको से सुन्दर उपदेश सुने मगर सुन कर उसे छोड़ दिया, यानी अपना अन्तस्तल से उसको नहीं अपनाया, मनन नहीं किया Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034562
Book TitleMurti Puja Tattva Prakash
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGangadhar Mishra
PublisherFulchand Hajarimal Vijapurwale
Publication Year1947
Total Pages94
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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