SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 46
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ० ० ० ० ० ० ० ० ० ० ० ० 品品許可 吊带 ० ० ० ० ० ० ० ० ० ० ० (४०) कराने के लिये सदैव तैयार रहती है । न कभी इन्कार करती है न थकती ही है। इस वर्ष१००० शीघ्रबोध भाग ११ वाँ १००० शीघ्रबोध भाग १००० , , १२ वाँ १००० ,, ,, १६ वाँ १००० , , १३ वा १००० ,, ,, २० वाँ १००० , , १४ वा १००० , , २१ वाँ १००० , , १५ वा १००० , २२ वा १००० , , १६ वा १००० ,, ,, २३ वाँ १००० , , १७ वाँ १००० , २४ वाँ ५००० द्रव्यानुयोग प्र. प्र. प्रथमवार १०००,, , २५ वाँ १००० द्रव्यानुयोग प्र.प्र. दूसरीवार १००० आनंदघन चौवीसी १००० वर्णमाला । १००० हितशिक्षा प्रश्नोत्तर । १००० तीन चतुर्मास-दिग्दर्शन । २५००० कुल प्रतिऐं। ___यहाँ के श्री संघने उत्साहित करीबन होकर ५०००) पांच हजार रुपये खर्च कर दिव्य समवसरण की रचना की थी। यह एक फलोधी की जनता के लिये अपूर्वावसर था। जैनधर्म की उन्नति में अलौकिक वृद्धि अवर्णनीय थी। श्रावकों का उत्साह सराहनीय था। भापश्रीने इन तीन वर्षों में ३७ आगमों की वाचना तथा १४ प्रकरण व्याख्यानद्वारा फरमाए थे । आपने इस वर्ष कई श्रावकों को धार्मिक ज्ञानाभ्यास भी कराया था। प्रतिक्रमण-प्रकरण और तत्वज्ञान ही आपके पढ़ाये हुए मुख्य विषय थे । फल स्वरूप में ० ० Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034561
Book TitleMuni Shree Gyansundarji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreenath Modi
PublisherRajasthan Sundar Sahitya Sadan
Publication Year1929
Total Pages78
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy