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________________ (३९) काम आप को बदनाम करने के लिये किये पर अन्त में वही नतीजा हुआ जो होना चाहिये था। धर्म ही की विनय हुई। विघ्नसंतोषी नत मस्तक हुए। आपने इस वर्ष यहाँ श्रीरत्नप्रभाकर प्रेमपुस्तकालय नामक संस्था को जन्म दिया। विक्रम संवत १९७६ का चातुर्मास (फलोधी )। मुनि श्री ज्ञानसुन्दरजी महाराज को अपना सोलहवां चतुमास फलोधी करना पड़ा । आप श्री व्याख्यानमें श्री भगवतीजी सूत्र सुनाकर आगमों को सुगम गतिसे समझाते थे। आपकी स्मरण शक्ति की प्रखरता पाठकों को अच्छी तरहसे पिछले अ. ध्यायों के पठनसे ज्ञात हो गई होगी । आपकी इस प्रकार एक विषय पर चिरकाल की स्थिरता वास्तव में सराहनीय है । मिथ्यात्वके घोर तिमिरको दूर करने में आपकी वासुघा सूर्य समान है। उस समय सारे मिथ्यात्वी भागमरूपी दिवाकर की उपस्थिति में उडुगण की तरह विलीन हो गये थे। इंस चतुर्मास में आपने पञ्चोपवास १, तेले ३ तथा बेले २ किये थे । फुटकर उपवास तो आपने कई किये थे। ____ इस वर्ष निम्न लिखित पुस्तकें मुद्रित हुई जिनकी जैन समाज को नितान्त आवश्यक्ता थी । विशेष कर मारवाड़ के लोगों के लिये इस प्रकार पुस्तकों की प्रचुरता होते देखकर किसे हर्ष नहीं होगा ? साधुओं का समागम कभी कभी ही होता है पर जिस घरमें एक बार किसी पुस्तकने प्रवेश किया कि वह झान Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034561
Book TitleMuni Shree Gyansundarji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreenath Modi
PublisherRajasthan Sundar Sahitya Sadan
Publication Year1929
Total Pages78
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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