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________________ (१६१) धर्म कर्म त्यागी रागी थईनेज भीख मागी, धनना संग्रहमाट लढे साधु त्यागीओ; सहु सहुनुं संभाळे धर्म सामुं कोण भाळे, काळो केर वर्ते छे शुं जुवो सोभागीओ. ठाम ठाम फूट पडी तुट घरेघर मांही, मायबाप भ्रात भगनीने नथी फावतुं; लडाई कलह मांही सर्वको बडाई माने, गणे नहीं अवरने आंगणामां आवतुं; वृद्ध गुरु जनतणी वातने न माने कोई, करे मन धार्य आवे जेने जेम फावतुं; दोन हीन एवी दशा थई दुःखरुप तोये, खरो धर्म रक्षवानुं कोने नथी भावतुं. माटे ओ मारा प्यारा भाईओ, आपणे आपणा धर्मप्रमाणे आपणी संसारिक संस्कार क्रिया नहीं करवाथी धर्मने हणी नांख्यो छे, तेथी आपणे पोतेज हणाई गयेला हिणा देखाईए छीए. तेथी हुं आप साहेबोने आग्रहथी भलामण करुं छु, अने भार मुकीने जणावं छं के मी. अमरचंद पी. परमारे जे दरखास्तमां-रडवाकुटवा-जमणवारो-खोटां फरजीआत खर्ची, छोकरीना पैसा खावा लेवा, घरडा वरने नानी कन्या परणावी विधवानो वधारो करवो, अने. कन्यानी अछत करी वंशनो क्षय करवो वगेरे बाबतो बतावी छे, ते आपणा धर्मथी विरुद्ध छे, अने जो तेने वळगी रहीशं, तो आपणे आपणा धर्मने हणी नांखनार थईशं. विगेरे जेजें बाबतो आवी पडे तेने माटे आपणे तुरत विचार करवो जोईए, के आ कृत्य करीए छीए ते आपणा धर्म प्रमाणे छ के केम ? अने जो धर्म प्रमाणे होय तो कर अने धर्म प्रमाणे नहीं होय तो तेनो त्याग करवो, पछी तेमां गमे तेटलो लाभ के स्वार्थ रहेलो होय. एटलुं कही छल्ले नीतिशास्त्रनो एक श्लोक कही मारु भाषण पुरुं करीश. निंदन्तु नीतिनिपुणा यदि वा स्तुवंतु, लक्ष्मीः समाविशतु गच्छतु वा यथेष्टम् । अद्यैव वा मरणमस्तु युगांतरे वा, न्याय्यात्पथः प्रविचलं ति पदं न धीराः॥ अर्थात् निंदा थाओ वा स्तुति थाओ, धन मळो अथवा जाओ, युग पर्यंत जीवाय वा. आजे. मरण भले थाओ, तोपण न्याय विरुद्ध एटले धर्मविरुद्ध एक पगलं पण धर्ममां धीर थएल. पुरुषो भरता नथी; माटे धर्म विरुद्ध कोईपण क्रिया करवी ए जैन नाम धरावनारने हींणु देखाडनारु छे, जे उपर आप साहेबो पुरतुं ध्यान आपी, सदासर्वदा धर्म ध्यानमा रत थई, कुगुरु. कुदेव अने कुधर्मनां फरमानोना जे जे बध ब-या होय, तेने तोडी स्वधर्ममां रुचिवान थई ते प्रमाणे वर्ती अमुल्य मनुष्य देहy साफल्य का शो, एटटुंज कही आपे मने जे लाभ आप्यो तेने माटे सभानो उपकार मानी बेसवांनी रजा लऊंटुं." Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034560
Book TitleMumbaima Bharayeli Biji Jain Shwetambar Conferenceno Report
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Shwetambar Conference Office
PublisherJain Shwetambar Conference Office
Publication Year1904
Total Pages402
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size41 MB
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