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________________ ( १४७ ) पडेछे. अफसोस ! मारवाडमां मरण पामेला संबंधीओने दिलासो आपवा दरेक गामथी मंडळो नीने जाय छे, तेने काण कछे. तेओने बेथी चार दिवस सुधी राखवामां आवे छे, अने रोटलीओ चोळीने अंदर शेर शेर बने शेर घी दरेकने रोजनुं खवडाववुं पडेछे. शियाळामां कोई मरेछे तो खुशी थायछे के शियाळानो खोराक थयो. बिचारा गरीब कुटुंबने पण एक मरण पाछळ आवा रडवा आवनाराओमांज सो सो रुपी आनुं घी खरच थई जायछे, अने न्याति जमण तो उभेलुंज होय छे. मारवाडीने कंजुस कहेवामां आवे छे, पण जो तेओ आखी जींदगी कर कसर न करे, तो मरणवखतना आवां खर्चे क्यांथी काढे ? बीजाओनी पेठे तेओने घरबार वेची करज काढी लाज राखवी पडे. मलीदा अने लाडु खाबा माटे त्यां एवो पण रिवाज प्रचलित थएलो जोवामां आवे छे, के कोईने त्यां लग्ननो प्रसंग आवे छे त्यारे न्यातीलाओने रजा आपवा माटे तेडवा पडे छे. ते न्यातीलाओ प्रथम मृत्यु पाछळनां चढेलां जमणो जमी अथवा ते माटे जामीनो लई, पछीज लग्ननी रजा आपे छे. मरणपाछळ जमण जमवा जवुं नहीं. काणे या रोवा जवुं तो पुरी हरकत वगर तेने त्यां `जमवुं नहीं. बार वृत्तधारीओ मरणनुं जमण केम जमता नथी ? कारणके तेम करवुं शास्त्रविरुद्ध छे. साधु मुनिराजोए पचखाण आपी अने न्यातवाळा ओए ठराव करी अने समजु जैनोए स्वयंमेव मरणपाछळ जमवुं अने जमाडवुं, ए रिवाज सदंतर बंध करावी धर्मभ्रष्टतामांथी बचाववा जोईए. बीजां खोटां फरज्यात खर्चा. " खोटां फरज्यात खर्चे-जेवांके अधरणी, बीजी जातनां जमणवारो, लग्ननी धामधुमनां अने -रौतरिवाजनां खर्चे, लग्नमां अमुक दिवसो तो न्यात जमाडवीज जोईए, वगेरे जे जे बाबतोमां जोईए त्यां. मलीदानीज वातो होय छे. मुनि श्री आत्मारामजी महाराजे ज्यारे भावनगर चोमासुं कर्यु, त्यारे अमुक गृहस्थने पर्युषण पर्व पुर्ण थतां पुउयु के कैम शुं हाल छे ! ते जवाब दीघो के " महाराज, शेरे शेर घीना लाडवानी वात नक्की करीने हमणांज आव्यां छं. आपणे जमणवारमां खुवार थता जईए छीए. दुष्काळना समयमां पण निराश्रित जैनो दुःखमां पीडाता होय, अने आपणे रोज न्यातमां माल उडावता होईए, ए बहुज अफसोसकारक छे. एक लग्न करवा जाय त्यां कन्याना बापने त्रणथी चार जमण करवां पडे, ए जुलमज कहेवाय. गरीब कुटुंबो ए खर्च सामे ज्यारे नभी शकता नथी, त्यारे कन्याना रुपीआ लेवानी तेओने फरज पडे छे. एक वार लीधा के फरी तेने टेव पडे छे. जो आपणे फरज्यात जमणो काढी नांखीए, तो घणा भाईओ तेथी सुखी थशे. मारवाड इलाकामां त्यांना दरबार अने महाराज सर प्रतापसिंगजीए कायदाओ बांधी फरज्यान जमणो बंध कर्या छे, अने वीस - माणसथी बधु जमाडवा ईच्छनारे दरबारनो परवानो मेळववो पडे छे. न्यातो ज्यांसुधी सारा धारा नहीं घडे, त्यांसुधी ए रिवाज बंध थवो कठिन छे. अघरणीनुं जमण जमवुं अने जमाडवु ए केयुं निर्लज छे. ए जमण जम्या पछी, ते स्त्री अने बाळक प्रसव वखते मरण पामतां आपणे सेंकडो दाखला जोईए छीए. वेशवाळ वखतनां, जुहार, मलणी वखतनां, सासरे पुत्रीने मोकलती वखतनां, वगेरे अनेक तरेहनां फरज्यात खर्चे काढी नांखवा जेवां छे. लग्नमां जबरीथी अने कीर्तिने खातर पण मारवाड वगेरे स्थळे भाटो अने सेवकोने हजारो रुपीआ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034560
Book TitleMumbaima Bharayeli Biji Jain Shwetambar Conferenceno Report
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Shwetambar Conference Office
PublisherJain Shwetambar Conference Office
Publication Year1904
Total Pages402
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size41 MB
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