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________________ (१४३) छे; अने आजे जमानो एवो आव्यो छे के, प्रमाणिक निष्ठा नष्ट थई गई छे, अने भ्रातृभावने बदले ईर्षा, फिसीआरी, अभिमान, कुसंप अने स्वार्थ धारी बेठा छे. बंधुओ! ज्यारे आवो उलटोज जमानो आपणी दृष्टिगोचर थतो जोवामां आवे छे, त्यारेज आपणामां संसारिक. तेमज धार्मिक हानिकारक रीतरिवाजो, कांईक संगतिथी, काईक अज्ञानथी, कांईक प्रमादथी अने कांईक पोताना आराम माटे आपणे लई बेठा छीए. ए दुष्ट रिवाजो जुदी जुदी न्यातो अने जुदा जुदा देशोमां एटला जुदा जुदा छे के, जेनी संख्या- परिमाण थई शक नहीं; ए रिवाजो एटला बधा छे के देशदेशना जुदा, गामगामना जुदा, घर घरना जुदा, बलके एक एक मनुष्यना जुदा जुदा छे. हानिकारक धार्मिक रिवाजो. देखादेखी अने अज्ञानताथी आपणे मिथ्यात्व उपर उतरता चाल्या छीए. जैनधर्म प्रमाणे श्री वीतरागप्रणीत आज्ञा विना अन्य सर्व जंजाळ मानवामां आवी छे. सद्देव, सद्गुरु, अने सद्धर्मने अंगिकार करवानो जैनसिद्धान्त होवा छतां, अंरी हतनी भक्ती न करतां, खेतलाजी, भैरव, माता, शनीश्वरजी, शिवजी, पीरजी, विगेरे अनेक देवताओनी स्थापना अने श्रद्धापूर्वक पूजा करवामां आवे छे. दक्षिणमां बालाजीनी पूजा थाय छे, अने दर शुक्रवारे जैनोना घरोमां आरतीओ थई प्रसाद वहँचाय छे. पोताना घरमांज नहीं पण जैन मंदिरोमां तेओनी मूर्तिओ घुसाडी देवामां आवी छे, तप जप कराववा लाग्या छे, ब्रह्मभोजन मोक्षनु साधन मानवामां आवे छे, हाडकां अने राख गंगाजी लई जवामां आवे छे, पीरजीने मनाववाने बाधाओ लेवाय छे, अमुक देवनी आगळ बच्चांनी बाबरी उतराववानी बाधाओ रखाय छे. जैन देवताओने पण बाधा आखडीओ चढाववामां आवे छे. वळी होळी भूख्या रहे, बळेव पाळवी, ग्रहणसंबंधी पालन, शीळीपूजन, शनीवारो करी कथाओ सांभळवी, वगरे रिवाजो देखादेखी हजारोनी संख्यामां अज्ञान जैनोमां पाळवामां आवे छे. दोराओ कराववा, झाडुझपट नंखाववी, नजर बांधवी, मंत्रथी पुत्र थवानी ईच्छा राखवी,. भूतडाकणो मानवी, वगेरे कौतुको पण कंई ओछां जोवामां नथी आवतां. ए रिवाजो मरदो करतां स्त्रीवर्ग वधारे अज्ञान होवाथी, तेओमां वधारे प्रचलित जोवामां आवे छे, अने मरदोने स्त्री आगळ हाजी हा करवु पडे छे. ए रीवाजो शं छे, केवी रीते खोटा छे, ग्रहण शुं वस्तु छे, वगेरे विस्तारथी कहेतां बहु लंबाण थवाना भयथी कहेतो नथी. जैनोमां जैन शास्त्रनी विधी प्रमाणे सोळ संस्कार वर्णवेला छे. जेमके गर्भाधान, पुंसवन, जन्म, सूर्यचंद्र दर्शन, क्षीरासन, षष्टी पूजन, शूचिकर्म, नामकरण, अन्नप्राशन, कर्णवेध, केशवपन, उपनयन, विद्यारंभ, विवाह, व्रतारोप, अने अंतकर्म. केटलाको एवो घमंड करे छे के जैनोमां संस्कार जेवू कशु नथी, अने तेओने वेद वगेरे उपरज आधार राखवो पडे छे. ए तो खरुं छे के जैनो ए सोळे संस्कार विसारी बेठा छे. सोळ संस्कारोनी शास्त्रोक्त. विधी छतां कोईपण संस्कार पूर्ण रीतिए करवामां आवतो नथी. क्यां छे सूर्यचंद्र दर्शन अने क्यां छे उपनयन? लग्ननी विधीमां तो बहुज अंधेर थई गयुं छे, ज्यां त्यां विप्र देवता मान्य थई रह्या छे. पहेला जमानामां श्री रुषभदेवना समयथी जैन विधिओ प्रचलित हती. मरहुम परम उपकारी मुनिराज श्री आत्मारामजी महाराजनो बनावेलो “तत्त्वनिर्णय प्रासाद" Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034560
Book TitleMumbaima Bharayeli Biji Jain Shwetambar Conferenceno Report
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Shwetambar Conference Office
PublisherJain Shwetambar Conference Office
Publication Year1904
Total Pages402
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size41 MB
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