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________________ (१३३) अमदावादवाळा मी. भगुभाई फतेहचंद् कारभारीनुं भाषण. " प्रेसीडेन्ट, गृहस्थो अने सन्नारीओ! मारा हाथमा जे दरखास्त मूकवामां आवी छे, ते जैन डिरेक्टरीना संबंधमां छे. डीरेक्टरी शब्द अंग्रेजी भाषानो होवाथी, तेनो अर्थ आप पैकीना घणा खराओने कदाच मालुम नहीं होय. तेनो अर्थ वही जेवो थायछे. आपणे रोजना नामाने रोजवही कहीए छीए, हुंडीनी नोंधने हुंडीवही कहीए छीए, आवा जुदा जुदा चोपडाने अन्य वहीओथी ओळखीए छीए; तो आ डीरेक्टरीनो अर्थ नामवही जेवो थायछे. आपणे घेर ज्यारे कांई टाणुं आवेछे अगर एवो बीजो कोई प्रसंग आवेछे, त्यारे आपणे जुदे जुदे स्थळे कंकोत्रीओ लखीए छीए, अने आ कंकोत्रीओ क्यां लखवी तेनी नोंध, आपणा संबंधीओनी आपणे त्यां राखवामां आवती वही उपरथी मेळवीए छीए. आवीज रीते आपणे त्यां ज्यारे कांई धार्मिक कार्य, जेवू के देरासरमां प्रतिष्ठा, उजमणुं आदि होयछे, त्यारे आपणने जुदा जुदा गामना संघने कंकोत्रीओ लखवानी जरूर पडेछ; अने ते वखते क्या क्यां जैनलोक रहेछे, केटला जैनो छे, तेओ शुं धंधो करेछे, वगेरे जाणवानी आपणने जरूर पडेछे; पण आपणी पासे आवी खबर आपनार एक पण साधन नथी. वळी कोई कोईवार आपणने नवां देरासरोमां जैन प्रतिमानी प्रतिष्ठा करवा माटे प्रतिमाओनी पण जरूर पडेछे, अने तेनी खबर जाणवाना लोभमां एक स्थळेथी बीजे स्थळे आपणने भटक, पडेछे, अने ते माटे पुष्कळ खर्च करवो पडे छे. आवी कांईपण खबर आपनार नोंधनी गेरहाजरीमां आपणां जैनमंदिरो क्यां क्यों छे, ते कोणे बंधाव्यां, अने तेमां कया कया तीर्थकर भगवानोनी प्रतिमाओ कया वखतनी छे, तेवीं नोंधवाळा पुस्तकनी पण जरुर छे, अने तेनो समावेश आ डीरेक्टरीमा थवो जोईएछे. भाग्येज कोई गाम के शहेर एवं हशे के ज्यां ज्ञानखातुं नहीं होय. आवां ज्ञानखातांओ कोना ताबामां छे, ते क्यां छे, तेमां शुं शुं मुंडी छे, कयां कयां पुस्तको छे, वगेरे जाणवानी स्वाभाविक रीते दरेक जैनबंधु आकांक्षा राखे, अने तेथी आ डीरेक्टरीमां आपणा ज्ञानभंडारो संबंधीनी पण हकीकत दाखल थवानी जरूर छे. वळी हालना आपणा धर्मगुरुओना बोधथी अने बीजी अन्यकोमोनी देखादेखीथी आपणे ठेर ठेर पाठशाळाओ खोलीए छीए. आ पाठशाळाओ कोणे स्थापी, तेमां शुं फंड छे, फंड भरनारा कया कया गृहस्थो छे; पाठशाळामां कया कया मास्तरो छे, तेओ शी ज्ञातिना छे, तेमणे शी केळवणी लीधी छे, तेमने शो पगार मळेछे, तेमनी शुं उम्मर छे, निशाळमां केटला विद्यार्थीओ छे, तेमने शुं भणाववामां आवेछे, वगेरे पण जाणवानी जरुर छ; अने आवी खबर जो बीजाना जाणवामां होय, तो तेने नवी पाठशाळामां आवां धोरणो दाखल करवानुं सुगम पडे. तेमज कदाच कोईने कोई नवो मास्तर जोईए, तोपण आवी खबरपोथीथी मळी आवे; माटे पाठशाळाओ संबंधी तमाम हकीकत आमां दाखल करवानी खास जरुर छे. वळी हालमां छापकळा वधीछे. अगाऊ आपणा पूर्वाचार्यों ग्रंथ बनावता, पण मुद्रणकळानी गेरहाजरीमां आवा ग्रंथो लखाववामां आवता हता, अने मुसलमानी राज्यमा आवा ग्रंथोनो नाश थतो होवाथी आपणा अनेक ग्रंथोने भंडारी देवामां आव्या छे, तेमां केटलाक तो उधाईने वश थई नाश पाम्या छे; पण आपणा अनेक जैनबंधुओ काई गेरसमजथी, कांई अन्याडीपणाथी के बीजी काई वर्तणुकथी, आवा ग्रंथो आपता नथी, पण आवा ग्रंथोना २२ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034560
Book TitleMumbaima Bharayeli Biji Jain Shwetambar Conferenceno Report
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Shwetambar Conference Office
PublisherJain Shwetambar Conference Office
Publication Year1904
Total Pages402
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size41 MB
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