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________________ मन, वचन अने कायाथी पुन्य के पाप थाय छे. करवं, कराव, अने अनुमोदq ए त्रण प्रकारे कर्म बंधाय छे, तेनाथी जेम बने तेम बचq ए आपणुं कर्तव्य छे. पांजरापोळादि धार्मिक काममां तन, मन अने धनथी मदद करवानी आपणी फरज छे, मुंगां प्राणीओने अभयदान आपवाने चूकवू नहीं जोईए. जीवदयानो विषय बहु विशाळ छे, एना माटे जेटलं विवेचन थाय तेटलु ओछु छे; पण जैनबंधुओ ते विषे बचपणथीज प्रेरीत थाय छे अने जीवो प्रत्ये दयानी खास लागणी धरावे छे, एटले आपनो अमूल्य वखत विशेष नहि रोकतां प्रार्थना पूर्वक एटलं कहीने समाप्त करं छु के तमाम प्राणी वर्ग प्रत्ये दया राखी, तेमने रक्षण आपो, तेमने अभयदान आपो अने तेमां तमारा तन, मन अने धननो खर्च करो." -::-- डॉक्टर. हरखचंद धारीवाल बी. ए., एल. एम. एंड एस. नुं भाषण. प्रेसिडेंट साहब, सर्व जैनी भाइयों और बहनो, बडी खुशीका समय है कि, आज इतने जैनीाई देशदेशांतरसे यहां जमा हुवे हैं. और बहुत खुशी इस बातकी कि, मुझ जैसे नाचीजको जीवदया बाबत कुछ कहनेको हुक्म मिला है. आप सब साहब जानते हैं कि जीवदया सब धर्मोमें उत्तम है और मुख्य है; और करीब सब मजहब इसे मानते भी हैं लेकिन जैनियों और अन्यमतियोंके जीवदया पालनेमें बडा फरक है. जैसे जैनी इस मुख्य धर्मको काममें लाते है, वैसे कोई दूसरा नहीं लाता है. और जो बारीकी जैनमतमें इसके बारेमें है वह किसी और मजहबमें नहीं है. देखो एक किताबमें लिखा था कि "हमारा मजहब सबसे उत्तम है क्योंकि, पापपुन्य इस मजहबके मुवाफिक करने सेही नहीं होते, बल्कि खयाल याने मनसे भी हो सकते है." अब जैन शास्त्रको इसके मुकाबलेमें देखिये कि क्या लिखा है. वो यह है कि कर्म सिर्फ करने ( काय ) और मनसेही नहीं होता, बल्कि बचनसे भी. सिर्फ यही नहीं. बल्कि करने कराने और करनेको भला जाननेमें भी होता है; यह सिर्फ छै ( ६ ) किस्म नहीं बल्कि इनके दो दो या तीन तीनके मिलानेसे ४९ तरहसे कर्म कहला सकते है. श्रावकको चाहिये कि इनमेंसे जितने तरह हो सके समझकर छोडे. आजकल युरोपियन सायन्स (Science) के जरियेसे सिद्ध हुवा है, कि बनस्पति कायमैं भी जीव है. यह तो जैनीयोंमें पहिलेहीसे मानते हैं, और काममें लाते हैं. इसी तरह जीवदया देखकर जैनीलोग शराबको सब लोगोंसे जियादः जोर देकर निषेध करते हैं; क्योंकि यह भी साबित हो गया है कि शराबके बननेमें असंख्यात जीवोंकी हानि है. इसी तरह कई बातें दिन बदिन साबित होती हैं, जो जैनीलोग पहिलेहीसे मानते हैं, और उनके मुवाकिफ काम करते हैं. जीव जितने हैं जहांतक होसके सबकी रक्षा करनी चाहिये. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034560
Book TitleMumbaima Bharayeli Biji Jain Shwetambar Conferenceno Report
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Shwetambar Conference Office
PublisherJain Shwetambar Conference Office
Publication Year1904
Total Pages402
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size41 MB
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