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________________ (१०३) वर्धमान संवत ओगणत्रीसे, चोवीसमो भादरवे मासे । को कहे चोथो आरो भासे-मुं० . जीनधर्म सदा जयवंत रहो, मंगल वाणी टोकरशी कहो । सम भावे सौ सुख शान्ति लहो-मुं० स्तुति. (राग कल्याण )-त्रिताल. जय जय जय जय जीनराज नमो, अशरण शरण अचळ सुखदायक, रक्षो नकल जन पालक छो, ईश धीश शिषनामी स्तविये अमो-जय. करो प्रेरणा देश सुधारो थवा, अम अतःकरण सुविधा वर्धवा, तारी कृपाथीज बंधुओमां अम वधशे विद्याथीज, ज्ञान विचार सुमति उद्यमो-जीन०-जय. शुभ संप वधे अम देश बधे, वळी धर्म व्यवहार सुकीर्ति सधे, मुख मागुं आरे दु:ख दुर करी सुखने संघरी, वरते स्वधी जय श्री विभो-जीन०-जय. धन्य आज प्रसंग सुविधावतो, मळ्या काज लायक लक्षण संतो, जैन जगो वीर थाओ सदा धीर गुणमय गंभीर, कहे टोकरशी सजन समो-जीन०-जय. ।दोहरो। वंदी अविनाशी अमो मंगळमय उज्माळ; जैन बाळको आपने ईच्छीए रहो खुशाल. शहेनशाह माटे प्रभु प्रार्थना ( अंग्रेजी रागनी चाल )-ताल दादरो. हळी मळी लळी विभो ! सौ मागीए अमो ॥ करजो अचळ हिंदपर एडवर्ड सातमो ॥ जेना राज्य अमलमां छीए सुखीआ अमो ॥ शत्रु कुळ तेनुं ईश सर्वथा दमो-हळी० 15 Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034560
Book TitleMumbaima Bharayeli Biji Jain Shwetambar Conferenceno Report
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Shwetambar Conference Office
PublisherJain Shwetambar Conference Office
Publication Year1904
Total Pages402
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size41 MB
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