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________________ ( ७७ ) आ दरखास्तमां समाएल केळवणी जेवी उमदा बाबतने संबंध आप सर्वे भाईओ अने बहे - नोने हुं पुछवाने रजा मागुंछु के:- विनयवान, नीतिवान, धार्मिकवर्तनवाळां अने कुळदीप फरजंदो. कोने जोइतां नथी ? सर्वेने सद्वर्तनवाळां धार्मिक बाळको जोईए छे, एम आनो जवाब आववानो संभव छे. व्यवहारिक संबंधे मारुं जाणवा तथा मानवापेणुं तो ए छे के मानवजींदगीमां लायक फरजंदो मेळववां ए सर्वथी मोटुं सुख अने एक खरेखरो संतोष अने मोटामां मोटी अभिलाषा छे. दरेक समजु माबाप फरजंदोने केळवणी आपवाने खुशी होय छे एटलुंज नहीं पण अजड, मूर्ख अने अज्ञान बाळकोने जोई दुःखी थाय छे, हाय अफसोस करेछे. होळी रीते जोईए तो फरजंदो मेळववानी मानवजातिनी ईच्छा देखाय छे, तेथी पण अधिक ईच्छा मेळवेल फरजंदने केळवणी आपवानी होय छे. केळवणीथी पशु, प्राणीओ, अने पक्षीओने सुधारी शकाय छे, केळवणीथी शाक, पाक अने खावाना पदार्थो सारो स्वाद आपेछे, केळवणीथी दरेक कार्य मनपसंद थाय छे. ए बधां कारणोनुं अवलोकन करतां केळवणी वधारवानां साधनो वधे एवं करवामां घणो फायदो छे. साधारण बाळकोनो केळवणीनी कृतिथी कुळदीपक पुत्रो तथा पुत्रीओ बनावी शकाय छे; आ सांभळी अजब थशो नहीं. पोपटनां बे बच्चांनी दंतकथा स्पष्टरीते स्थापित करेछे के जेवुं शिक्षण मळे तेत्रो माणस तैयार थायछे, शिक्षणना योगे डहापण मळेछे. शिक्षणनी खामीवडे मूर्खपणुं प्राप्त थायछे, एटले के केळवणीथी मूर्खने डाह्यो माणस करी शकाय छे. बच्चुं ए मात्र एक खाली पेटी जेवुं छे मां केळवणीरुपी जेवो रंग भरो तेवुं ते थायछे. हवे हुं कहीश के ज्ञान, विद्या, केळवणी अने शिक्षण ए सर्वेने अरसपरस घणो संबंध छे. ज्ञान अने विद्या लगभग एक छे, उंडाणमां जोईए तो विद्याथी ज्ञान मळे छे. विद्या ए शिक्षण अने केळवणीथी प्राप्त थाय छे. आ केळवणी लेवानां घणां द्वार अने रस्ता छे, पण ए तमाम रस्ताना समूहमांथी सर्वथी निर्भय अने सहेलो रस्तो पाठशाळाओ अने पुस्तको छे; अने ए रस्ताथी अधिकारी बाळकोने विद्या मळेछे. आ विद्या ए एवी शक्ति छे के ते शक्ति कुपात्रने सुपात्र बनावे छे, सुपात्रने वधारे सुपात्र बनावे छे. विद्या ए एवी चीज छे के जेने चोर चोरी शकतो नथी, ए चीज जेम जैम खर्चीए एटले आपीए तेम तेम अमरवेली माफक वधती जाय छे, विद्याने अग्नि बाळी शकतो नथी, पवन विद्याने उडावी शकतो नथी, तेमज जळ एने डुबावी शकतुं नथी; एटले के पंचमहाभूतो तेनो नाश करवाने समर्थ नथी. विद्याने अग्नि, पवन, पाणी, वीजळी, गुरुत्वाकर्षणआदि सर्वे तत्वो वश थाय छे. विद्या मेळवनार शख्सो 'विद्या गमे तेटली मेळवे तोपण तेना समूहमांथी विद्या खूटी जती नथी; तेमज विद्या मेळवावा ईच्छनार कदी तेनो पार पामी शकतो नथी. विद्या लेनारने कदी ते लेतां अरुचि थती नथी. एटलुंज नहीं, पण विद्या वडे सिंह, वरु वाघ, विगेरे क्रूर जंगली प्राणीओ वश थाय छें. विद्या आगळ अशक्य चीजो शक्य थाय छे. अने ए आवी महिमावान विद्या लेवाने वृद्ध, जुवान, अने बाळको बधां अधिकारी छे. विद्या लेवाने राजा, श्रीमंत, गृहस्थ, गरीब अने भिक्षुक ए तमाम वर्ग आरजुमंद छे. आ दान ग्रहण करवामां कांई पण शरम के शंका नथी. विद्यादान ग्रहण करवानो सर्वेनो हक छे, दान लेनार व्यक्तिनी स्थिति अने कांति तेजस्वी थतां जाय छे. विद्याथी धर्म, अर्थ, काम अने मोक्ष ए पुरुषार्थ सिद्ध थई शके छे. आ विद्या आपवा माटे नामदार सरकारे दरेक जगोए १५ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034560
Book TitleMumbaima Bharayeli Biji Jain Shwetambar Conferenceno Report
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Shwetambar Conference Office
PublisherJain Shwetambar Conference Office
Publication Year1904
Total Pages402
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size41 MB
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