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________________ ( ५५ ) विद्याकामां प्रवीण होय ते प्रजा सरसाई भोगवेछे. ज्यां जोईए छे त्यां एमजं देखाय छे के जे प्रजा विद्याकळामां आगळ वधेली होयछे तेज सर्वोपरी पद मेळवेछे अने भवित्र्यमां पण तेमज रहेशे एम अनुमान थायछे. प्राचीन काळमां पण तेम हतुं तेना पुरावा पण गेरहाजर नथी. जुना आर्यो कहो अथवा जुनी जैन प्रजा कहो ते आसपासना देश प्रदेशो ऊपर जे सरसाई भोगवती आपणे वांचीए छीए, ते पण तेमना बुद्धिबळनी उत्तम स्थितिज हती अने तेमनी संतति हाल केत्री दुर्दशाए पहोंची छे अने ते कया कारणथी ते आपणे सर्वे जाणीए छीए अने ते फरी कहेवानी जरूर नथी के विद्यानी खामीथी ! ! आपणे आ स्थितिमां पडी रहेवुं अने हाल छीए ते करतां पण दुनियामां पाछळ पडवुं, के दोडती दुनियांनी साथ घसडाई आगळ दोडवुं ए बन्नेमांथी शुं पसंद करवुं ए आपणी मरजी ऊपर के. पण आपणा बधानुं अहीं भेगा थवुं एज सुचत्रे छे के आपणे बेसी रहेवानो विचार करवाने नहीं परंतु बधाओनी साथे आगळ वधवानां पगलां भरवानो विचार धरावीए छीए. युरोपखंड एशिया करतां नानो छे अने तेनां संस्थानों सहितनी एकंदर वस्ती दुनियांनी वस्तनो एक नानो भाग थाय छे ते छतां आ नानी संख्या सर्वोपरी सत्ता भोगवेछे अने ते आपणे फरीथी. कही शुं के विद्याबळथी. वधारामां जोईए तो हालना काळमां प्रजामतनी शक्ति वधी छे. प्रजासमुहनी स्थितिनो विचार करतां आ नवी शक्ति पण आपणुं ध्यान खेंचेछे अने ते शक्ति प्रजामत छे. अगाऊ ज्यारे माणसो एक बीजानी साथै क्वचित प्रसंगमां आवता. अने एक बीजानो संबंध एटलो दुरनो हतो के अरसपरस विचार बदली शकता न होता त्यारे प्रजामत ए शब्दतुं महत्व कांईपण हिसाबमां न होतुं जो मत कहीए तो फक्त राज्यकर्तानो हुकम हतो के जेना उपर वादविवाद चालतो नहोतो. जो प्रजा विचार करती तो ते पण पोताना धर्मगुरु अथवा राजा अने विद्वानोना मतने अनुसरतोज करती. हालना समयमां दरेक माणस पोताना विचार स्वतंत्र रीते बतावी शके छे. प्रजासमुहनी बाबतना विचार होय तो ते प्रजामत धीमे धीमे एकठो थई छेवटे एवुं गंभीर रूप पकडे छे के तेना विरुद्ध धनारने हंफावे छे एटले सुधी के, राज्यकर्ताने पण प्रजामतने मान आपवानी फरज पडेछे. एवो कोई माणस नथी के श्रोते मनस्वीपणे वर्त्ते अथवा बीजाने नुकशान करे अथवा जुलम करे अने तेना जातभाईओ प्रजामतरुपे एकत्र थई धिक्कारी न काढे अथवा तेने हरावे नहीं. एक रीते प्रजामत ए प्रजानी मानसिक शक्तिनुं बळ छे. एवी कोई संस्था नथी पछी ते गमे तेवी प्राचीन होय अथवा कायदा अथवा सत्ताधी रक्षित होय के जे अन्यायी अथवा नुकशान कारक जणाय तो तेने प्रजामत कायमने माटे धिक्कारी शके अने पोते हठे नहीं. आवी हानिकारक संस्थानी आसपास आ प्रजामतरूपी पवन वधारे वधारे जोरथी चारे बाज़थी फूंकवा मांडेछे; अने जो ते सुधरे अथवा डगे नहि तो छेत्रटे वंटोळीआ रूपे तेने जडमूळथी उखेडी नांखे छे. ज्यारे देशना जुदा जुदा भागोमां संख्याबंध न्युसपेपरो अमुक कोमना अथवा गांवना अथवा प्रजाना मत दर्शाया माटे अथवा तेमांना खराब रिवाजो काढी नांखवा माटे उपायो दर्शाववा माटे नीकळतां हतां त्यारे गया व सुधी आ जैनवर्गनुं हित अहित दर्शावनार जाहेरपत्र नहोतुं परंतु जणाववाने खुशी उपजे छे, के जेम आखी को पोतानुं श्रेय करवा आ संस्था उभी करीछे त्यारे कोमना माणसो पण ते तरफ प्रयास करवा मंड्या छे अने मारा मित्र मि. भगुभाई फत्तेहचंद Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034560
Book TitleMumbaima Bharayeli Biji Jain Shwetambar Conferenceno Report
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Shwetambar Conference Office
PublisherJain Shwetambar Conference Office
Publication Year1904
Total Pages402
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size41 MB
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