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________________ ( ३८ ) तेने समरावी सुशोभित करवाने माटे आपणे बनतो श्रम लईए छीए, तेम वडीलो विगेरेनी छबीओ राखी तेमना स्मरणने माटे पैसा खरचीए छीए तो पछी आपणा महान् पूर्वाचार्यो, जमणे पोताना कांईपण स्वार्थ विना केवळ परोपकार अर्थे अने भविष्यना जमानाना कल्याण माटे धर्मना रस्ता कायम राखवाना हेतुथी जे पुस्तकोरुपी प्रसाद आपणा माटे रची गया छे, अने जेनी प्रतो प्राचीनकाळना धर्मरागी पुरुषो अथाग द्रव्य अने मेहनतनो खर्च करी करावी गयाछे, तेनी जीर्ण व्यवस्था थशे. आपणे तेनी लायक संतति छीए एटलुं साबीत करवाने तेनो उद्धार करवामां पछात रहीए, ए शुं थोडं शरम भरेलुं छे ? जो तेवा ग्रंथोनी हयाती बंध थशे तो आपणने तेमज आपणी संततिने धर्मप्राप्तिनुं साधन न रहेतां, आ संसारमां अनंतकाळ सुधी भ्रमण करवा सिवाय बीजुं परिणाम आववानुं नथी. आपणा प्राचीन ग्रंथोनी हयाती देशना जुदा जुदा भागोमां श्रावकोनी पासे भंडारना आकारमां सांभळवा तेमज जोवामां आवेछे, परंतु काळना प्रभावने लीधे, नथी तेओ पोते तेनो उपयोग करता अथवा नथी कोईने आपता; अने घासनी गंजी उपरना कुतरानी माफक पोते राखी मुके छे एटलुंज नहीं, पण पोताना धर्म बंधुओने आपवाने बदले अन्य धर्मीओने पैसा लईने वेचे छे. आ हकीकत तेओने ओछी शरमभरेली छे! जैनोनी प्रजा देशना जुदा -जुदा भागोमां बेहेंचाई गएली छ, अने तेओए धर्मना उपदेशने माटे जुनां पुस्तकोना उद्धार करनार थई संख्याबंध नकलो साधु मुनिराजोने आपवी जोईए छे, के जेथी तेमनो अमूल्य उपदेश लेवाने आपणे भाग्यशाळी धई शकीए. आ उद्धार बे रीते धई शके तेवुं छे, एक तो छापवानी कळाथी अने बीजो जे क्रियानुं हुं विवेचन करवानो लुं तेनाथी. आपणे जैनो आपणां केटलांक पवित्र पुस्तको संसारी वांची शके नहि एम मानीए छीए अने तेम करवामां आशातनानो बाध गणीए छीए. छापवानी कळामां अशुद्धता आपवानी बीक उपरांत प्रुफ वगेरे रद जवामां जे आशातनानी बीक, तेमज सरेस वगेरेनो उपयोग ए शास्त्र विरुद्ध गणाय छे; तेम छतां, सूत्रो जेवा पवित्र अने थोडाओ समजी शके तेवानी छापवानी रीते वधारे नकलो लेवी पडे, तेनो बहोळो उपयोग न थवाथी ते पैसा नकामा रोकाई रहे, ते पण आ नवी तिथी बचे छे. आ रीत बे जातनी छे, एकने फेरो - टाईप अने बीजीने पोझीटीव सायनोटाईप रीत कहे छे. आ बन्ने क्रियामां प्रथम प्रत तैयार कर्याथी पछी ज्यारे जोईए त्यारे सूर्यना प्रकाशथी दर बे मीनीटे एक प्रत तैयार थई शके छे. वपराता पदार्थो आशातना रहित छे तेम सस्ता छे, अने गरम पाणीथी ते काम वधारे सा थाय छे. एक साधारण माणस मजुरोनी मददथी दररोज हजारो नकलो लई शकेछे. कोईपण जैन आपणा धर्मनां पुस्तकोना उद्धारने माटे आ रीत शीखवा मागशे अथवा कोई मंडळी आ काम उपाडवा मानशे, तो तेने हुं शीखवी देवामां खुशी थईश. आ रीतथी केटलांक पानां तैयार करेलां छे अने आ भाषणनो सार " जैन " पत्रना उत्साही एडीटर अने मारा मित्र मी. भगुभाई छापत्रा मागे छे, ते अरसामां पाटणना भंडारनी एक जुनी प्रतनी नकलो लेवानुं काम मी. भगुभईना प्रयासथी शरु थएलुं छे. आशा छे के आपणा जैन बंधुओ ने तवंगर गृहस्थो आ रीत उपयोगमां लई पोते ज्ञान मार्गे खरचवा धारेला पैसानो उपयोग, तेव जीर्ण पुस्तकोना उद्धारमां करी पोताने कृतार्थ करशे अने आवता जमानाने एक आशीर्वादरुप धर्मफळ वारसामां आपता जशे. आटलं बोली आ दरखास्तने अनुमोदन आपी हुं सी जवा रजा लउं छं." Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034560
Book TitleMumbaima Bharayeli Biji Jain Shwetambar Conferenceno Report
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Shwetambar Conference Office
PublisherJain Shwetambar Conference Office
Publication Year1904
Total Pages402
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size41 MB
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