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________________ ( ३७ ) करवानी खास जरूर छे; अने ते उद्धार करवानी मारी एवी सुचना छे के जेवुं जीन मंदीर बांधवामां आवे छे, तेवुं जे ठेकाणे सारा अने जुना वणा ग्रंथो होय त्यां मोटुं ज्ञान मंदीर थई तेमां सर्वे ठेकाणांना ग्रंथो एक ठेकाणे जुदा जुदा कबाटवार राखी तेमां जे जीर्ण थयेला ग्रंथो होय तेना नवा ग्रंथो सारा लखनार लहीआ पासे लखावी ते सारा विद्वान्पासे तपासावी छपावत्रा घटे तो छपाववा, अने जो छपाववानी जरूर न जणाय तो तेना कागळो घणा उंचा अने तेनी शाही पण घणी उंची होवी जोईए; पण बनतासुधी ग्रंथो लखाय तो सारं कारणके तेथी आसातना थोडी थतां ग्रंथनुं लखाण लांबो वखत रही शके छे. हवे मारी आ नम्र विनंति सर्वे साहेबोने जणावी मने मळेलो टाईम वधारे नहीं होवाथी आप साहेबनी पासे बेशी जवानी रजा लईश. "" धर्म पुस्तकोनो उद्धार करवा माटे फंड चालु करवानी सुचना. अत्रे मी. फतेहचंद कर्पुरचंद लालने जणाव्यं के:- “ मने जाहेर करतां वणी खुशी उपजे छे के धर्मपुस्तकोनो उद्धार करवा संबंधी हाल जे बोलायुं तेनी एटली तो सारी असर थई छे, के एक गृहस्थ तरफथी मने जाहेर करवानी फरमास करवामां आवे छे, के जो अत्रे धर्मपुस्तकोनो जीर्णोद्धार करवा माटेनुं फंड चालु करवामां आवे तो तेओ अमुक रकम ते फंडमा आपवा तैयार छे ( ताळीओ ). आ प्रमाणे धर्मपुस्तकोनो उद्धार करवा माटेना फंडने मदद करवा घणा तैयार हशे, तेथी हुं तेवा गृहस्थोने सुचना करीश के तेओए पोताथी बने ते मदत करवी अने ते रकम मी. अमरचंद तलकचंदने भरवी. " शाह. मोतीलाल कशळचंद अमदावादवाळानुं भाषण. “जीर्णपुस्तकोना उद्धारनी बाबतमां हमणां बोली गएला गृहस्थनी दरखास्तने अनुमोदन आपवाने मने घणो हर्ष थायछे. आ बाबत ते गृहस्थे केटलुंक विवेचन करेलुं छे, तेमज आ विषयनुं उपयोगीपणुं एटलुं तो साबीत अने खुल्लुं जणाई आवे छे के ते विषे वधारे बोली हु आपनो वखत रोकवा मागतो नथी. हुं जे कहीश ते मात्र आ उद्धार करवानी बाबतमां हालनी रसायणी विद्याओनी मददथी, आ काम केटलुं सेहेलाईथी, थोडा खर्चथी अने बीलकुल आशातनारहित क्रियाओ वडे प्राचीन पुस्तकोनो उद्धार करी शकाय अने जे मारा हाथे लांबों बखत अजमावेली छे अने जेना कायमपणाने माटे जमानाना मोटामा मोटा रशायणी खात्री आपेछे, ते क्रियाओ विषे थोडुं विवेचन करीश. दरेक धर्म संसारनी चीजोने अने देहने अनित्य माने छे अने तेमनी साथे फक्त चालु जींदगीनोज संबंध छे एम कबुल करेछे छतां ते चीजो उपर एटलो मोह होय छे, के तेने कायमने माटे भोगवी शके अथवा बीजा जमानाने माटे उपयोगमां आवे तेम राखवाने माटे बनतो प्रयास करेछे; तो पछी धर्म के जे घणी जींदगीओ साथै रही अंते मोक्षद्वारे पहोंचाडेछे तेनां साहित्योने कायम राखवाना प्रयत्ननी वधारे जरूर छे एम कोईथी ना कही शकाशे नहीं. दाखला तरीके आपणुं घर जीर्ण थएल होय तेने जो के आपणी जींदगानी साथेज संबंध छे अने आपणे ते भोगवीशुं के नहीं तेनी खात्री नथी, तोपण १० Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034560
Book TitleMumbaima Bharayeli Biji Jain Shwetambar Conferenceno Report
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Shwetambar Conference Office
PublisherJain Shwetambar Conference Office
Publication Year1904
Total Pages402
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati
File Size41 MB
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