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________________ (४७) ॥२॥ युद्धके जितने हारे महाचक्रधारी बली और मेरी तुल्य बलवान् तुम होवो और मेरी भक्ति तुमको अधिक होगी और सामवेदसे तुम गाये जाओगे ॥ ४ ॥ उन्ही शिवके प्रसादसे परमतेजस्वी विष्णुजी अजेय और बली होकर सब पृथ्वीकी रक्षा करते हैं ॥५॥ विरुपाक्ष कमल लोचन महेश्वरको विष्णुने अनेक प्रकारकी श्रेष्ठ पूजा स्तुति और ध्यान धारणादिसे प्रसन्न किया ।। ६ ।। शूलपाणी हिरण्यमय महादेवका ब्रह्माजीने महापूजन ध्यान किया था इससे प्रसन्न होकर शिवजीने चतुर्मुख ब्रह्माको अपने अंगसे उत्पन्न हुए रुद्रके द्वारा संहर्ती किया ॥ ७॥ वही युग युगमें दाता हर्ता रक्षा करनेवाले ' और संहार करनेहारे हैं ॥ ८ ॥ पितामहत्व देवता और असुरोंका ब्रह्माधिपत्य-वेदाधिपत्य परम अध्ययन अनागत अतीत वर्तमान जो कुछ संसारमें हैं, संपूर्ण लोकोमें चराचरत्व ॥ ९ ॥ षडंग सहित सब वेद परिभाषा योग है, ब्राह्मणो ! शिवके प्रसादसे निष्कालत्व और दिव्य ब्रह्मलोक मैने पाया है ॥ १०॥ इस लेखसे सिद्ध होगया कि विष्णुने महादेवजीको अपनेसे बडा और समर्थ जानकर उनकी आराधना करके उनसे वरकी प्राप्ति करी, अब विचार करो कि जब महादेवजी खुद ही विष्णु तथा ब्रह्मा है तो फिर वर प्रदान क्या अपने आपको ही दिया ?, तथा महादेवजी कहते है जो कुछ लोकमें दिखता है वह कुछ सब मैही हुं, अगर यह कथन सत्य होवे तबतो गौ बकरा आदि जानवरोंको काटनेवाले कसाई और कटनेवाले जानवर, मच्छीमार, धाड मारनेवाले धाडुनी लोक आदि तथा कितनेक मार पडनेसे रोते हैं Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034555
Book TitleMat Mimansa Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaykamalsuri, Labdhivijay
PublisherMahavir Jain Sabha
Publication Year1921
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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