SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 68
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( ४६ ) - भावार्थ-तपसे मानसे दानसे अभ्याससे व्रतयोगमें परायण तत्त्वको जाननेवाले महात्मा जो फल प्राप्त करते हैं ॥ ३१ ॥ वह सब फल मेरे लिंगकी पूजा करनेसे प्राप्त होता है, मैंही युग युगमें सृष्टिका कर्ता हर्ता हूं ॥ ३२ ॥ निस्संदेह मुजहीसे सब प्राणी उत्पन्न होते हैं, हे महामुने ! मैं ही ब्रह्मा विष्णु और सोम-महादेव हूं ॥ ३३ ॥ हे बिभीषण ! जो कुछ लोकमें दिखता है वह सब कुछ मैंही हूं ॥ ३४ ॥ इस उपर लिखे हुए वर्णनको तुच्छ बुद्धिवाले लोक भले ही सत्य माने परंतु बुद्धिमान् लोक तो इन बातोंको स्वममें भी सत्य नहीं मानेंगे, कारण कि तपस्या करनेसे दान देनेसे व्रत पालनेसे तथा योगाभ्यासमें परायण होनेसे जो फल होता है वो शिवलिंगकी पूजा करनेसे होवे तब तपस्या वगैरह शुभ कृत्य करनेकी जरुर हो क्या रहेगी?, और कुछ भी नहीं और लिंगपूजामें इतना क्या माहात्म्य आगया कि जिससे सारा सभ्य समाज परहेज करता है; तथा मैही ब्रह्मा हूं मै ही विष्णु हूं और जो कुछ लोकमें दिखता है वह सब कुछ मे ही हूं इत्यादि लेखको भी बुद्धिमान् लोग असत्य हो मानेंगे, कारण कि शिवपुराण सनत्कुमारसंहिता अध्याय आठवे में लिखा है सो देखो ऋषि बोले, शिवजीको किस प्रकार प्रसन्न किया जा सकता है ? सो कहो हमारे सुननेकी इच्छा है ॥ १ ॥ तब ब्रह्माजी बोले, हे ब्राह्मणो ! विष्णुने महादेवको प्रसन्न करनेके लिये एक कोड छासठ हजार वर्षतक शूलपाणी महेश्वरका आलधन किया तब शिवजीने प्रसन्न होकर अनेक वर दिये Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034555
Book TitleMat Mimansa Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaykamalsuri, Labdhivijay
PublisherMahavir Jain Sabha
Publication Year1921
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy