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________________ ( १८ ) रके बाद परमात्माकी खास पहिचानके लिये कुछ विचार किया जाता है, ध्यानसे सुनो- . ... " दूषणेभ्यो विनिर्मुक्तो-अष्टादशेभ्यो भवेद्धि यः । .. प्रातिहार्याष्टकैर्युक्तः परमात्मा स उच्यते ॥ १ ॥" जो अष्टादश दूषणसे रहित और अष्टप्रातिहार्य सहित हो सो परमात्मा कहा जाता है, यह लक्षण प्रथम नंबरके तीर्थकर प्रभुमें सामिल होसकता है परंतु असल तो अष्टादश दूषणसे रहित इतना कहे तो भी कार्य चल जाता है और सामान्य केवलीका भी इस लक्षणसे ग्रहण हो जाता है, तथा सिद्ध पद भी लिया जा सकता है परंतु तीर्थकरप्रभु सबके विशेष उपकारी होनेसे उनके आश्रित परमात्माका लक्षण बताया गया. श्रावक-गुरुदेव ! वे अष्टादश दूषण कोनसे हैं, इस विषयमें जरा विस्तारसे विवेचन सुनाकर उपकृत करें. सूरीश्वर-महाशय ! सुनिये ! इसके बारेमें दो श्लोक इस तरह आते हैं " अन्तराया दानलाभ-वीयभोगोपभोगगाः। हासो रत्यरती भीति-र्जुगुप्सा शोक एव च ॥ १ ॥ कामो मिथ्यात्वमज्ञानं, निद्रा चाघिरतिस्तथा । रागो द्वेषश्च नो दोषा-स्तेषामष्टादशाप्यमी ॥ २॥" १-दानांतराय नामका दूषण जिनमें न हो अथात् दान चाहे इतना दे सके परंतु जैसे कोई कोई आदमीके दिलमें दान देनका इरादा होता है परंतु आप करके उदयसे नहीं Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034555
Book TitleMat Mimansa Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaykamalsuri, Labdhivijay
PublisherMahavir Jain Sabha
Publication Year1921
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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