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________________ (१७०) होगा कि, नहीं ! नहीं ! !. इन बातोंका करना तो महाअधर्म है ही है मगर इन बातोंकों सत्य मानना भी पापके लिये होता है. विष्णुपुराण अंश ४ अध्याय १३ के २८ वे पृष्ठ पर 'स्यमंतकमणि' के लिये कृष्णजीने शतधन्वाको जानसे मार डाला. जिस बातका उल्लेख प्रथम लिख चुके हैं सो ही विषय है. मात्र इतना ही फर्क है कि, कृष्णजीने जब बलभद्रजीको कहा कि शतधन्वाको मारा मगर मणि उसके पास नहीं निकली. तब बलभद्र समझे कि, कृष्ण मणिके लोभसे मेरे पास झूठ बोलते हैं। इस वास्ते उनका भाईसे वैमनस्य हो गया. कृष्णजीने सोगन खाया मगर उनोने नहीं माना और विदेहपुरीमें चले गये और श्रीकृष्णद्वारकामें आ गये. विष्णुपुराण अंश ४ अध्याय १९ के ३७ वे पत्रमें कथन है कि सुंदर अप्सराओंको देख कर सत्यधृतिका वीर्य निकल पडा और सरकने पर पडनेसे आधा एक तरफ और आधा एक तरफ हो गया. एक तरफके वीर्यसे लडका उप्तन्न हुआ और दूसरी तरफके वीर्यसे लडकी उप्तन्न हुई. उस समय शांतनु शिकार करनेको आया था सो इन दोनोंको दया करके ले गया. लडके का नाम 'कृप' और लडकीका नाम 'कृपी' रक्खा. मो द्रोणाचार्यकी स्त्री और अश्वत्थामाकी माता होती हुई. देखो ! कैसी असत्य कल्पना है!. ऐसी कपोल कल्पनाको बतानेवाले शास्त्र धर्मके रहस्यको किसी तरह प्रकाशित नहीं कर सकते हैं. अतः इन बनावटी शास्त्रोंको जलांजलि देकर सत्यशास्त्रोंकी तरफ झुक जाना चाहिये. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034555
Book TitleMat Mimansa Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaykamalsuri, Labdhivijay
PublisherMahavir Jain Sabha
Publication Year1921
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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