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________________ ( १५७ ) શ્રાવકાને છૂંદી ” गगनं कुसुम जैसी असत्य प्रतीत होती है. मात्र उस पृष्ठ परकी बातों से घनश्यामके हृदयमें श्रावकों पर बडा द्वेष है यही बात सत्यतया भास होती है, क्यों कि वह मंडलेश्वर के मुंहसे ऐसे शब्द निकलवाता है कि- " सहुपयोगमा भेट हे जनशे સદુપયોગમાં એટલુ જ કે तेटसा श्रावाने छुट्टी नामीश. " न उस वख्तके श्रावकों पर मंडलेश्वरको इस प्रकार द्वेष होनेका कुछ साधन लिखा है और नाहीं सहारत. इससे मंडलेश्वरकी यह नीचभावना तो किसी तरह साबित नहीं होती, मगर घनश्यामकी बुद्धि पर द्वेषानलकी श्यामता ऐसी चढ़ी हुई है कि, अगर उसको पावर मिले तो अवश्य मंडलेश्वर के नामसे निकाले हुए अपने नीच हृदय के शब्दों को अमल में रक्खे यह तो साबित होता है, मगर बिल्ली और सर्पको पांखें कहांसे ? कुदरतकी यही खूबी है. पृष्ठ १३ वें पर -- "तिना तर भेड तीक्ष्ण नजर नाजी તેણે ( મુજાલે ! નમસ્કાર કર્યાં, અને હીંચકાપર બેસવા તેને સૂચવ્યુ, પાતે પાસે પડેલા પાટલાપર જઇને બેઠો. બીરાજો नमस्कार मंत्रि महाशन ! उही यानं हसूरि . " यहां पर इस काल्पनिक कथाकी पोल खुल जाती है. क्यों कि, मुंजाल मंत्री जैसा ज्ञात श्रावक जतिको हींडोले पर बैठनेको कदापि नहीं कह सकता तथा यति जिसको सूरिके नामसे प्रसिद्ध किया है मंत्रीको नमस्कार किसी तरह नहीं कर सकता, इससे नोवेल बनानेवालेने गप्पगोले चलायें हैं. ऐसा सिद्ध होता है. इसके उपरांत आनंदसूरि नामका जति उस वरूत हुए हुए महात्माओकी पट्टावलीओंमें निकलना चाहिये, जब नाम ही न निकले फिर असत्यताका कहना ही क्या ? लेखकको उचित था Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034555
Book TitleMat Mimansa Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaykamalsuri, Labdhivijay
PublisherMahavir Jain Sabha
Publication Year1921
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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