SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 165
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१४३) फाड कर बहार निकलता भया और शिवजीके समीप प्राप्त होता भया, वहां एक सरोवर बन गया. बडा खच्छ और. बहुत योजन विस्तृत सुवर्ण किसी कांतिवाला फुले हुए कमलोंसे शोभित उस सरोवरको सुन कर पार्वतीदेवी सखीयोंसे युक्त हो उसके-सरोवरके जलमें क्रीडा करती हुई और तीर पर स्थित हो उस जलको पीनेकी भी ईच्छा करी. उस समय स्नान करती 'कृत्तिका' भी छः छः सूर्योके समान उस जल को देखती भयी. तब पार्वती कमलके पत्ते पर स्थित हुए उस जलको ग्रहण करके आनंदसे बोली कि कमल पत्र पर स्थित हुए इस जलको मैं देखती हूं ॥ २७-से ३२ ॥ ऐसे पार्वतीके वचनको सुन कर 'कृत्तिका' पार्वतीसे बोली कि हे शुभानने ! इस जलसे जो तुमारे गर्भ रह जावे तो वह हमारे नामसे प्रसिद्ध हमारा ही पुत्र संसारमें प्रसिद्ध होवे ऐसी प्रतिज्ञा करे तो हम इस जलको देवें. यह सुन कर पार्वतीजी बोली कि, मेरे अवयवोंसे युक्त हुआ बालक तुह्मारा पुत्र होवेगा ॥ ३३-से-३५ ॥ जब पार्वतीने यह बचन कहा तब कृत्तिका बोली कि हम उसके उत्तम उत्तम अंगोंका विधान कर देवेंगी. यह बात सुन कर पार्वतीने कहा कि अच्छा इसी प्रकार हो जायगा. तब वह कृत्तिका प्रसन्न हो कर उस जलको पार्वतीके निमित्त देती भई, तब पार्वतीने भी वह जल पी लिया. इसके अनंतर उस जलका गर्भ पार्वतीकी दाहिनीकोखको फाड कर बाहिर निकला और उसमेंसे सब लोगोंको प्रकाशित करनेवाला अद्भुत बालक निकला. सूर्यके समान तेजस्वी, कंचनके समान देदीप्यमान शक्ति और शूलको ग्रहण किये हुए छ। मुखवाला वह अद्भुत Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034555
Book TitleMat Mimansa Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaykamalsuri, Labdhivijay
PublisherMahavir Jain Sabha
Publication Year1921
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy