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________________ ( १३९) के भी आत्माका नाश नहीं होता है. हे हिमाचल ! मरणेवाले देहधारीका शरीर संसारमें नष्ट हो जाता है परन्तु आत्माका कभी भी नाश नहीं होता है. ब्रह्मासे ले कर स्थावर वृक्षादि पर्यंत सब संसार जन्म मरणके दुःखसे पीडित है, महादेवजी अचल हैं. स्थाणु हैं, कभी जन्म नहीं लेते हैं, अमर हैं और रोगोंसे भी रहित हैं ऐसे जगन्नाथ महादेवजी इस तेरी पुत्रीके पति होवेंगे ॥ १८३-१८६ ॥ यह उपरोक्त लेख पुराणोंकी पूर्ण अव्यवस्थाको सिद्ध करता है, क्योंकि विष्णुपुराणमें महादेवजीने विष्णुकी उपासना की ऐसा वर्णन है और यहां पर महादेवजी ही अजर अमर और अविनाशी और ब्रह्मा विष्णु सजर समर और सविनासी है. ऐसे उन्मत्त वचनवत् बहुत स्थल पर परस्पर विरुद्ध उल्लेख दृष्टिगत होते हैं जिसका सरवैया यही निकलता है कि, ये तीनों ही देव ईश्वर नहीं. मत्स्यपुराण १५३ वे अध्यायमें गणेशको उत्पति जिस तरह लिखी है सो प्रथम बताऐ हुए प्रकारसे विरुद्ध होनेसे पुराणोंकी पारस्परिक विरुद्धताका खयाल दिलाती है. मत्स्यपुराण १५४ वे अध्यायमें बयान है कि महादेजीने पार्वतीको कृष्णा कहा इससे गुस्सेमें आ कर पार्वती शिवजीके पाससे जाने लगी, तब शिव ने उसे बहुत समझाई और आखर ऐसा भी कहा कि, मैं तूझको सिरसे प्रणाम करता हूं और सूर्यको ओर हाथ जोडता हूँ इत्यादि वचनोंसे पार्वतीको बहुत खुशामत करी परंतु पार्वतोने Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034555
Book TitleMat Mimansa Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaykamalsuri, Labdhivijay
PublisherMahavir Jain Sabha
Publication Year1921
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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