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________________ ( १३८) मत्स्यपुराण अध्याय १५३ वे में ब्रह्मा विष्णुको जन्म करके पीडित है ऐसा लिखा है. देखो नीचे के मृत्यु जरा और श्लोक 44 ॥ १८० ॥ ॥। १८१ ॥ ॥ १८२ ॥ न स जातो महादेवो, भूतभव्यभवोद्भवः । शरण्यः शाश्वतः शास्ता, शङ्करः परमेश्वरः ब्रह्मविष्विन्द्रमुनयो, जन्ममृत्युजरार्दिताः । तस्यैते परमेशस्य, सर्वे क्रीडनकागिरे आस्ते ब्रह्मा तदिच्छातः संभूतो भुवनप्रभुः । विष्णोर्युगे युगे जातो, नानाजातिर्महातनुः मन्यसे मायया जातं, विष्णुं चापि युगेयुगे । आत्मनो न विनाशोऽस्ति, स्थावरान्तोऽपि भूधर ! ॥ १८३॥ संसारे जायमानस्य, म्रियमाणस्य देहिनः । नश्यते देह एवात्र नात्मनो नाश उच्यते ॥ १८४ ॥ ब्रह्मादिस्थावरांतोऽयं, संसारो यः प्रकीर्त्तितः । सजन्ममृत्युदुःखार्त्तो, ह्यवशः परिवर्त्तते ॥ १८५ ॥ महादेवोऽचलः स्थाणु-र्न जानो जनको जरः । भविष्यति पतिः सोऽस्याः, जगन्नाथो निरामयः || १८६ ॥ " अर्थ - भूत भविष्यद् और वर्त्तमान इन सबके ईश्वर शरण्य शाश्वत शास्ता शंकर महादेव परमेश्वर हैं. ये कभी जन्में नहीं हैं ॥ १८० ॥ ब्रह्मा विष्णु इंद्र और मुनि यह तो जन्म मृत्यु और जरा अवस्था इनसे पीडित होते हैं और महादेवजी के ये सब क्रीडाके स्थान हैं, उन ही महादेजीकी . इच्छा से ब्रह्मा अपने भुवनके पति हो रहे हैं. विष्णु युगमें युगमें अनेक जातियोंमें महान् शरीरोंको धारण करते हैं । १८१ - १८२ ॥ मायाके वशीभूत युग युगमें जन्मे हुए विष्णु --- * Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034555
Book TitleMat Mimansa Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVijaykamalsuri, Labdhivijay
PublisherMahavir Jain Sabha
Publication Year1921
Total Pages234
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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