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________________ मारवाड़ का इतिहास इसकी एवज में गवर्नमैन्ट ने जोधपुर-दरबार को सालाना ३,००० रुपये देना तय किया । इसी के साथ एक शर्त यह भी रक्खी गई कि यदि उन गांवों की आय में से वहां का सारा खर्च बाद देकर कुछ बचत होगी तो उसमें से ४० रुपया सैंकड़ा जोधपुर-दरबार को दिया जायगा। इसी वर्ष जोधपुर-दरबार ने डाकखाने के नियमों को स्वीकार कर प्रजा के लिये बाहर के समाचार पाने और अपने समाचार बाहर भेजने की सुविधा करदी । इसी वर्ष की कार्तिक सुदि ७ ( १४ नवंबर ) को जनरल हार्डिज ( बंबई का जंगी लाठ ) जोधपुर आया और इसके दो दिन बाद कार्तिक सुदि १ (१६ नवंबर ) को स्वयं वायसराय लॉर्ड डफरिन जोधपुर पहुंचा । महाराजा ने भी अपने सरदारों और मुसाहिबों के साथ स्टेशन पर जाकर उसका स्वागत किया । उस समय स्टेशन से कैंप ‘निवासस्थान ) तक की सड़क के दोनों तरफ़ पुराने ढंग के जिरह-बख़्तरों से सजे हुए सवार खड़े किए गए थे। मारवाड़ में पहले आगरे का बना बरफ काम में लाया जाता था । परन्तु इसके मँहगे होने के कारण सर्व साधारण इसके उपयोग से वंचित रहते थे। यह देख दरबार ने जोधपुर में अपना निज का बरफ़ का कारखाना खोल दिया । इससे सर्व साधारण के लिये भी सुविधा हो गई। पहले नगर के लोग अधिकतर रानीसागर, गुलाबसागर, और तैसागर नामक तलावों का पानी पिया करते थे। परन्तु गरमियों में अक्सर इनका पानी सूख जाने से जनता को बड़ा कष्ट होता था। इसलिये कुछ समय से बालसमंद नामक बांध से एक नहर बनवा कर जरूरत के समय इनमें से पिछले दो तलावों में पानी भरने का प्रबन्ध किया गया। कुछ काल से मालगुजारी ( हवाले ) के महकमे का प्रबन्ध मेजर लॉक ( Major W. Loch), ऐसिस्टैंट रैजीडेंट, की देख-भाल में होने लगा था । वि० सं० १९४३ (ई० स० १८८६) में मिस्टर ह्यसन के मर जाने पर सायर, हवाला और सैटलमैंट के काम के लिये मिस्टर ई० ए० फ्रेजर नियुक्त किया गया, और मेवाड़ की सरहद के निर्णय १. इसी वर्ष ठाकुर रणजीतसिंह कोतवाल बनाया गया । २. इसी अवसर पर (ई० स० १८८६ में) महाराज प्रतापसिंहजी को के, सी. एस. आइ. का पदक मिला । यह पहले सी. एस. आइ. हो चुके थे। ३. इसी वर्ष की रिपोर्ट से ज्ञात होता है कि राज्य की तरफ से कानून आदि सिखाने के लिये जो स्कूल खोला गया था, वह अच्छी तरक्की कर रहा था । इसी वर्ष राज्य की तरफ से ४८० Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034554
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1940
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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