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________________ महाराजा मानसिंहजी महाराजा मानसिंहजी बड़े समझदार, विद्वान् , गुणी और राजनीतिज्ञ थे' । परन्तु सरदारों से अत्यधिक मनोमालिन्य और नाथ-सम्प्रदाय से अत्यधिक प्रेम होने के कारण इनके राज्य में अव्यवस्था बनी रही । इनके राज्य के ४० वर्षों में से सायद ही कोई वर्ष ऐसा बीता हो जिसमें इन्हें चिन्ता न रही हो । परन्तु इस प्रकार संकटों का सामना रहने पर भी इनकी विद्या-रसिकता इतनी बढ़ी-चढ़ी थी कि उसे जानकर आश्चर्य हुए विना नहीं रह सकता । महाराज की सभा में अनेक कवि, गायक, योगी और पण्डित हर समय बने रहते थे । महाराज को स्वयं भी कविता करने का और खास कर मांढ़' (रागिणी ) का शौक था । इनकी बनाई पुस्तकों और फुटकर कविताओं का एक बड़ा संग्रह राजकीय पुस्तकालय (पुस्तक-प्रकाश ) में विद्यमान है । इनमें से 'कृष्णविलास' नामक पुस्तक राज्य की ओर से प्रकाशित हो चुकी है। इसमें श्रीमद्भागवत के दशमस्कन्ध के प्रथम ३२ अध्यायों का भाषा में पद्यानुवाद है । इन्होंने कई हजार हस्तलिखित पुस्तकों का संग्रह कर एक पुस्तकालय बनाया था और उसमें वेद, पुराण, स्मृति आदि अनेक विषयों के ग्रन्थों का संग्रह किया था । इन्होंने रामायण, दुर्गाचरित्र, शिवपुराण, शिवरहस्य, नाथचरित्र आदि अनेक धार्मिक ग्रंथों के आधार पर बड़े बड़े चित्र बनवाए थे । इन चित्रों का अपूर्व संग्रह इस समय राजकीय अजायबघर में रक्खा हुआ है । महाराज में एक खास गुण यह था कि इनके पास आनेवाला कोई भी नया मनुष्य खाली हाथ नहीं लौटता था । इनका सिद्धांत था कि जो कोई किसी के पास जाता है लाभ के लिये ही जाता है, इसलिये यदि उसे खाली लौटा दिया जाय तो फिर एक राजा में और साधारण पुरुष में क्या अन्तर रह जाता है । इनके विषय में मारवाड़ में यह दोहा प्रसिद्ध है: जोध बसायो जोधपुर, व्रज कीनो व्रजपाल । लखनेऊ काशी दिली, मान कियो नेपाल । १. वि० सं० १८७६ ( ई० स० १८२२ ) में मिस्टर विल्डर ने अपने पत्र में गवर्नमेंट को लिखा थाः___महाराजा मानसिंह निश्चय ही बड़े बुद्धिमान और समझदार हैं ( Raja Mansingh is undoubtedly a Man of superior sense and understanding......). Rajputana Gazetteer Vol. III-A, P. 73. २. गवर्नमेंट के ऑर्कियोलॉजिकल डिपार्टमेंट ने भी इस संग्रह की मुक्तकंठ से प्रशंसा की है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034554
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1940
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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