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________________ मारवाड़ का इतिहास वह दरवाजे के बाहर आते हुए वीरता से लड़कर मारा गया । यह देख पौकरनठाकुर सालमसिंह भागकर पहले महामन्दिर में नाथजी की शरण में जा रहा और बाद में पौकरन चला गया । उसी समय अन्य अनेक षड्यंत्रकारी सरदारों की जागीरें जब्त करली गई और इसके बाद भादों (अगस्त) के महीने में विपक्ष के और भी बहुत से लोगों को अनेक तरह के दण्ड दिए गएं । परन्तु जिन्होंने उचित सेवाएं की थीं उन्हें पुरस्कृत कर उनकी पद-वृद्धि की गई । वि० सं० १८७८ ( ई० स० १८२१ ) में सिंघी मेघराज और धांधल गोरधन को संधि के अनुसार १,५०० सवारों के साथ अंगरेजों की सहायता के लिये दिल्ली की तरफ़ रवाना किया । करीब एक वर्ष के बाद ये लौटकर जोधपुर आए। इसी बीच देवनाय के भ्राता भीमनाथ और पुत्र लाडूनाथ के आपस में झगड़ा उठ खड़ा हुआ । इस पर महाराज ने महामन्दिर नामक गाँव लाडूनाय को सौंप दिया और भीमनाथ के लिये नगर के बाहर उदयमन्दिर नामक गाँव बसाकर उसे अलग १. इसके बाद यह लौट कर जोधपुर नहीं आया । वि० सं० १८७८ ( ई० स० १८२१) में पौकरन में ही इसका देहान्त हुआ। २. आसोप-ठाकुर केसरीसिंह इस समाचार को सुन आसोप से देसणोक (बीकानेर-राज्य में ) चला गया। वहीं पर उसका देहान्त हुआ। इससे आसोप पर राज्य का अधिकार हो गया। इसी प्रकार चंडावल, खेजड़ला, रोहट, नींबाज, साथीण आदि के ठाकुर भी भाग कर मेवाड़ चले गए और उनकी जागीरें ज़ब्त हो गई । पौकरन के मजल और दूनाडा भी जब्त किए गए। इसी प्रकार इन सरदारों के ज़िलायतों के गांव भी छीन लिए गए। खींवसर-ठाकुर कैद किया गया। यह करीब ५ वर्ष के बाद दण्ड के रुपये देकर कैद से छूटा। प्राउवे के ठाकुर की जागीर भी ज़ब्त करली गई। यति हरकचन्द, जो छत्रसिंहजी का वैद्य था । कैद किया गया। लोदा कल्याणमल का छोटा भाई तेजमल, जिसको महाराज ने राव की पदवी दी थी, महाराज-कुमार छत्रसिंहजी के मामले में मुहता अखेचन्द से मिल गया था। इससे महाराज उससे नाराज़ थे। परन्तु अन्त में सिंघी फौजराज के सम्बन्ध से उसके कुटुम्ब वालों को माफी देदी गई । ३. राजकार्य चलाने के लिये (१) सिंघी फतैराज, (२) भाटी गजसिंह, (३) छांगांणी कचरदास, (४) धांधल गोरधन और (५) नाज़िर इमरतराम की कमेटी बनाई गई । ४. वि० सं० १८८५ ( ई० स० १८२८) में लाडूनाथ का स्वर्गवास होगया । ४२४ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034554
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1940
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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