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________________ मारवाड़ का इतिहास जोधपुर-राज-घराने में होना स्थिर होचुका है, उसका विवाह दूसरे राज-कुल में करना उचित नहीं है, तथापि उन लोगों ने इस पर कुछ ध्यान नहीं दिया। इसके बाद जब उदयपर से कृष्णकुँवरी के वाग्दान का टीका जयपुर भेजा जाने लगा, तब महाराज भी मेड़ते की तरफ़ चले और वहाँ पहुँच युद्ध की तैयारी करने लगे । महाराज ने जसवन्तराव होल्कर को भी सेना लेकर आने का लिख भेजा था । इसी से वह पहले के उपकार का स्मरण कर स्वयं नाँद नामक गांव में आकर ठहर गया । महाराज मी उस समय नाँद में थे। वहीं पर दोनों की मुलाकात हुई । इसी समय सिंघी इन्द्रराज भी सिरोही की तरफ़ से ससैन्य आ उपस्थित हुआ । ___ इस तैयारी की सूचना पा जयपुर-नरेश जगतसिंहजी भी युद्ध के लिये उद्यत होगए । परन्तु शीघ्र ही जोधपुर के बख्शी सिंघी इंद्रराज और जयपुर के दीवान रायचन्द ने मिल कर इस झगड़े को शान्त करदिया और दोनों ही नरेशों से कृष्णकुँवरी से विवाह न करने की प्रतिज्ञा कराली । इस प्रकार विरोध को दूर हुआ जान होल्कर भी वापस लौट गया। वि० सं० १८६३ के कार (आश्विन ) (ई० स० १८०६ के अक्टोबर ) में महाराज नाँद से लौट कर मेड़ते पहुँचे । उस समय देश में अकाल का इतना प्रकोप था कि सरकारी खर्च तक के लिये इधर-उधर से रुपये इकट्ठे करने की आवश्यकता होती थी। यहीं पर महाराज ने पुराने सेवकों की शिकायत से सिंघी इन्द्रराज और भंडारी गंगाराम आदि को मय उनके पुत्रों के कैद करलियो । १. यह घटना वि० सं० १८६२ की माघ वदि ३० ( ई० स० १८०६ की १६ जनवरी) की है। २. ख्यातों से प्रकट होता है कि पौकरन-ठाकुर सवाईसिंह ने ही, मारवाड़ में झगड़ा खड़ा कर धौंकलसिंह को राज्य दिलाने की इच्छा से, इन्हें ताना देकर युद्ध करने के लिये उकसाया था। उन्हीं से यह भी ज्ञात होता है कि महाराज को युद्ध के लिये तैयार देख उदयपुर से टीका लेकर जयपुर जानेवाली मेवाड़ की सेना शाहपुरे के पास से वापस लौट गई थी। परन्तु 'राजपूताने के इतिहास' में महाराना का दौलतराव सिंधिया से हार कर जयपुर के वकील को, जो शादी का पैगाम लेकर आया था, लौटा देना लिखा है । (देखो भा० ४, पृ० १००५-१००६)। ३. इस से सिरोही पर फिर राव वैरसलजी (द्वितीय) का अधिकार हो गया । ४. इसी अवसर पर जयपुर-नरेश जगतसिंहजी की बहन से महाराजा मानसिंहजी का और मानसिंहजी की कन्या से जगतसिंहजी का विवाह होना स्थिर हुआ। ५. इन कैद होने वालों में स्वर्गवासी महाराजा भीमसिंहजी का धायभाई शम्भुदान, आदि अन्य राज्य-कर्मचारी भी थे। ४०६ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034554
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1940
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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