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________________ जागीरदारों पर लगनेवाले राजकीय कर मारवाड़ में यह रिवाज पहले-पहल राजा उदयसिंहजी के समय चला था। इसके बाद सवाई राजा शूरसिंहजी ने इस (पेशकशी) की रकम जागीर की एक वर्ष की आय के बराबर नियत कर दी । महाराजा अजितसिंहजी ने राजराजेश्वर का खिताब प्राप्त करने के बाद इसका नाम बदल कर 'हुक्मनामा' करदिया । (परन्तु महाराजा अजितसिंहजी के नाबालिग होने के समय जब मारवाड़ पर बादशाह औरंगजेब का अधिकार हो गया, तब मुल्क के तागीर ( जब्त ) हो जाने पर भी यहां की प्रजा, दरबार और सरदारों को, अपना असली मालिक समझ, सालाना कुछ रुपया खर्च के लिये देने लगी और इसकी एवज में महाराजा की तरफ़ के सरदार भी अपने सैनिकों के आक्रमण आदि से उसकी रक्षा करने लगे। परन्तु महाराजा अजितसिंहजी के जोधपुर पर अधिकार कर लेने पर यह रकम 'तागीरीत' के नाम से उपर्युक्त हुक्मनामे के साथ ही वसूल की जाने लगी। ) महाराजा विजयसिंहजी के समय जब मरहटों के उपद्रव को दबाए रखने के लिये अधिक रुपयों की आवश्यकता होने लगी. तब हुक्मनामे की रकम डेवढी-दुगुनी करदी गई । महाराज भीमसिंहजी के दीवान सिंघी जोधराज ने इसके साथ 'मुत्सद्दी-खर्च' नाम की एक रकम और बढ़ा दी । इसके बाद महाराजा मानसिंहजी के समय 'हुक्मनामे' की रकम दुगुनी से भी अधिक बढ़ गई और महाराजा तखतसिंहजी के समय तिगुनी चौगुनी तक हो गई। अन्त में वि० सं० १९२६ ( ई० स० १८६६) में पोलिटिकल ऐजेन्ट की सलाह से 'हुक्मनामे' के नियम बनाए गए और साधारण तौर पर इसकी रकम जागीर की एक साल की आमदनी का पौन हिस्सा नियत किया गया। साथ ही बेटे या पोते के उत्तराधिकारी होने पर उस साल की (जिस में हुक्मनामा लिया गया हो ) रेख और चाकरी माफ़ की गई । परन्तु भाई-बन्धुओं में से किसी के गोद आने पर रेख लेने और चाकरी माफ़ करने का नियम बना । साथ ही यदि एक वर्ष में दो उत्तराधिकारी गद्दी पर बैठे, तो केवल एक 'हुक्मनामा' और दो वर्ष में दो उत्तराधिकारी गद्दी बैठे, तो डेढ 'हुक्मनामा' लेने का नियम रहा । इसके अलावा यदि जागीरदार 'हुक्मनामे' की रकम को ज़्यादा समझे, तो जागीर की जन्ती कर उसकी एक साल की आमदनी लेलेने का कायदा भी बना दिया गया । परन्तु साथ ही ऐसी हालत में उससे रेख और चाकरी नहीं लेना भी तय किया गया। १. अन्त में महाराजा तस्तसिंहजी के समय यह रकम माफ कर दी गई। ६२६ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034554
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1940
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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