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________________ मारवाड़ का इतिहास महाराजा भीमसिंहजी के समय भी प्रति हजार तीन सौ रुपयों के हिसाब से दो वार यह कर वसूल किया गया । महाराजा मानसिंह जी के समय, जयपुर की चढ़ाई के बाद, अमीरखाँ को रुपये देने के लिये प्रति-हजार तीन सौ रुपये के हिसाब से रेख ली गई और वि० सं० १८६४ ( ई० स० १८०७ ) से राज्य के विशेष खर्च के लिये हर पांचवें वर्ष प्रतिहजार दो सौ से तीन सौ रुपये तक 'रेख' वसूल करने का एक नियम-सा बना दिया गया। वि० सं० १८१६ ( ई० स० १८३६ ) में पोलिटिकल एजैंट की सलाह से हरसाल प्रति-हजार की जागीर पर अस्सी रुपये रेख के लेना निश्चित किया गया। परन्तु एक-दो बरस बाद ही जागीरदारों ने इस कर का देना बंद कर दिया। __वि० सं० १९०१ ( ई० स० १८४४ ) में महाराजा तखतसिंहजी के समय मुहता लक्ष्मीचन्द ने फिर 'रेख' वसूल करने का प्रबन्ध किया। परन्तु इसमें पूरी सफलता नहीं हुई। अन्त में वि० सं० १९०६ (ई० स० १८४६ ) में पंचोली धनरूप ने, जो उस समय 'फौजदारी-अदालत' का हाकिम था, महाराज की आज्ञानुसार जागीरदारों से प्रति-हजार अस्सी रुपये सालाना 'रेख' के देने का दस्तावेज लिखवा लिया । उसपर पौकरन, आउवा, आसोप, नींबाज, रीयां और कुचामन के सरदारों ने दस्तखत किए थे। यद्यपि रेख का रुपया मुत्सद्दियों और खवास-पासवानों आदि से भी लिया जाता है, तथापि उसकी शरह भिन्न है । हुक्मनामा। यह रिवाज भी पहले-पहल अकबर ने ही चलाया था। उस समय किसी मनसबदार के मरने पर उसका सारा माल-असबाब, जागीर और मनसब जब्त कर लिए जाते थे और फिर उसके लड़के के एक बड़ी रकम 'पेशकशी' में नज़र करने पर वे सब बादशाही इनायत के तौर पर, उसे दे दिए जाते थे । १. मजमूए हालात व इन्तिजाम राज मारवाड़, बाबत सन् १८८३-८४ ( संवत १६४०) पृ० ४४०-४४७ । ६२८ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034554
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1940
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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