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________________ महाराजा उमेदसिंहजी वि० सं० १९७७ की फागुन सुदि १ (ई० स० १९२१ की २८ मार्च) को मारवाड़ में मनुष्य-गणना की गई और उसके अनुसार मारवाड़ की जन-संख्या १८,४१,६४२ सिद्ध हुई। इन दिनों नाज बराबर महँगा हो रहा था, इसलिये वि० सं० १९७८ की आश्विन वदि ५ (२२ सितंबर ) को राज्य की तरफ से नाज की दूकानें खुलवा कर गेहूं का भाव नियत करदिया गया। कार्तिक बदि ८ (२४ अक्टोबर ) को महाराजा साहब १७ वें पूना हौर्स रिसाले के अवैतनिक (ऑनररी )-कप्तान बनाए गए । इसके बाद ही महाराजा साहब पढ़ाई समाप्त कर मेरो कालिज ( अजमेर ) से जोधपुर चले आए और रीजेंसी काउंसिल' के मैंबरों से राज-कार्य संचालन का अनुभव प्राप्त करने और 'जुडीशैल' और 'रिवैन्यू' के मुकद्दमों की कार्रवाई देखने लगे। ___ कार्तिक सुदि ११ ( ११ नवंबर ) को जोधपुर-नरेश महाराजा उमेदसिंहजी साहब का विवाह, जोधपुर में ही, ओसियां के (भाटी ) ठाकुर जैसिंह की कन्या सौभाग्यवती श्रीमती बदनकुँवरीजी साहबा से हुओ । की वर्ष गांठ के उत्सव पर बाली के किले में के बारूद के उड़ने से हताहत हुए लोगों के परिवार वालों को ६,५६० रुपये की सहायता दी गई । इसी शुभ अवसर पर ठाकुर नाथूसिंह ( रास ) और लक्ष्मीदास सापट ( चीफ़ जज ) को रामो बहादुर की उपाधियां मिलीं। इसी वर्ष गवर्नमेंट ने मारवाड़ राज्य में स्थित बी. बी. एण्ड सी. आइ. रेल्वे के स्टेशनों पर के कर्मचारियों के नाम बाहर से आए सामान पर कर ( सायर की चूंगी ) वसूल करने का मारवाड़दरबार का अधिकार स्वीकार कर लिया । १. वि. सं० १६७८ की भादों सुदि ७ (८ सितंबर ) को जोधपुर की 'पोलोटीम' ने 'पूना अोपन पोलो टूर्नामैंट' में कामयाबी हासिल की। २. उस समय गेहूं का भाव एक रुपये का ३॥ सेर हो गया था। ३. इन दुकानों पर मोहल्लेवार नियत किए हुए पुरुषों की हस्ताक्षर वाली छपी हुई चिहियों से नाज खरीदा जा सकता था। यह प्रबन्ध लोगों के अनुचित लाभ उठाने के प्रयत्न को रोकने के लिये किया गया था, क्योंकि हस्ताक्षर करने वाले पुरुष नाज खरीदने वालों की आवश्यकताओं को देख कर ही चिड़ियां दिया करते थे। ४. इसके लिये आप 'चीफ-कोर्ट में बैठ कर अभियोगों की कार्य-प्रणाली देखते थे। ५. इस अवसर पर रीवां-नरेश महाराजा गुलाबसिंहजी भी जोधपुर आकर इस शुभ-कार्य में सम्मिलित हुए। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034554
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1940
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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