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________________ मारवाड़ का इतिहास वि० सं० १९७५ की आश्विन वदि १४ (ई० स० १९१८ की ३ अक्टोबर ) को, २१ वर्ष की अवस्था में ही, इन्फ्लुएंजा की बीमारी से, महाराजा सुमेरसिंहजी का स्वर्गवास हो गया । इसी प्रकार गवर्नमेंट ने भी आपको जी. सी. बी. और 'लैटिनेंट जनरल' के पदों से भूषित किया था। इसी समय मिस्र के सुलतान ने महाराजा सुमेरसिंहजी को भी इसी ( ग्रांड कॉर्डन ऑफ़ दि ऑर्डर ऑफ दि नाइल ) की उपाधि से सम्मानित किया । महाराजा सुमेरसिंहजी ने, इस युद्ध में सहायता देने के लिये गवर्नमेंट से इनफैटरी की एक विशिष्ट 'बटेलियन' (Battalion of Indian Infantry ) तैयार करने की आज्ञा मांगी थी और वि० सं० १६७५ की आषाढ वदि १३ (ई० स० १६१८ की ६ जुलाई ) को भारत-गवर्नमेंट की आज्ञा मिल जाने पर सिपाहियों की भरती भी प्रारम्भ करदी थी । परंतु कार्तिक सुदि ६ ( १२ नवम्बर ) को युद्ध स्थगित ( Armistic) हो जाने से यह काम रोक दिया गया । उस समय भारतवर्ष के वायसराय की प्रार्थना पर, 'सेंट जॉन ऐंबुलेंस' और 'रैडक्रॉस सोसाइटी' की मदद के लिये जोधपुर में, वि० सं० १६७४ की मँगसिर वदि ११, १२ और १३ ( ई० स० १६१७ की १०, ११ और १२ दिसम्बर ) को 'पॉवर डे' का उत्सव (Our day fete) किया गया । इसमें खेल और तमाशों का प्रबन्ध था और इससे ४८,७८५ रुपयों की आय हुई थी । इसके अलावा जोधपुर-दरबार की तरफ से भी उन 'सोसाइटियों' की सहायता के लिये एक लाख रुपये दिए गए। इसी प्रकार वि० सं० १६७४ की द्वितीय भादों सुदि १५ ( ई० स० १६१७ की ३० सितम्बर ) तक जोधपुर-दरबार की तरफ से युद्ध से सम्बन्ध रखने वाले अन्य अनेक चन्दों में भी कुल मिलाकर ८,५१,०६८ रुपये दिए गए। इसके साथ ही जोधपुर-दरबार ने अपना रेल्वे का कारखाना भी गोले बनाने के लिये खोल दिया था और यहां पर तेरह पाउंड वाले ३५४ गोले बनाए गए थे। १. भादों वदि ११ (१ सितम्बर ) को महाराजा साहब पोलो के लिये पूना गए, परन्तु वहां पर तबीअत खराब होजाने से, भादों सुदि ११ (१६ सितम्बर) को, आप जोधपुर लौट आए । यहां पर शीघ्र ही शिमला, अजमेर, बंबई और कराची के प्रसिद्ध-प्रसिद्ध डाक्टरों को बुलवा कर आपकी चिकित्सा का प्रबन्ध किया गया । परन्तु रोगने दोनों पुफ्फुसों में फैलकर डबल निमोनिया ( double pneumonia ) का रूप धारण करलिया । आपके असमय-स्वर्गवास पर जामनगर, उदयपुर और किशनगढ़ के नरेशों ने स्वयं यहां आकर और ग्वालियर, बूंदी, सीकर और नरसिंहगढ़ के राजाओं ने अपने प्रतिनिधि मेज कर अपना हार्दिक-शोक प्रकट किया। ५३० Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034554
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1940
Total Pages406
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size35 MB
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