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महाराजा सरदारसिंहजी वि० सं० १५५६ की चैत्र सुदि ( ई० स० १९०२ की अप्रेल ) में महाराजा सरदारसिंहजी मेरठ से देहरादून गए और वहां से लौट कर वैशाख बदि (मई) में जोधपुर आए । इसके बाद नवें दिन आप यहां से आबू होते हुए देहरादून लौट गए । इन्हीं दिनों जोधपुर में पत्थर की सड़क बनवाने का आयोजन किया गया ।
श्रावण सुदि १३ ( १७ अगस्त ) को महाराज फिर देहरादून से जोधपुर और विन सुदि २ (३ अक्टोबर ) को आपने अपने चचेरे भाई महाराज दौलतसिंहजी को 'राजाधिराज' की पदवी से भूषित किया ।
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( २२ नवंबर ) को जोधपुर में, उस समय के भारत के वायसराय,
मँसिर द लॉर्ड कर्जन का आगमन हुआ । इस पर महाराजा की तरफ़ से भी स्वागत का यथोचित प्रबंध किया गया । एक रोज स्वयं महाराजा ने सरदार - रिसाले का संचालन कर उसकी ‘परेड' करवाई । उस समय अपने- अपने घोड़ों के नीचे बैठे सिपाहियों का गोली चलाना देख लॉर्ड कर्जन ने बड़ी प्रसन्नता प्रकट की ।
इसके बाद महाराजा दिल्ली जाकर, पौष सुदि २ ( ई० स० १९०३ की १ जनवरी) को, होनेवाले दरबार में 'इम्पीरियल कैडेट कोर' की तरफ़ से सम्मिलित हुएं और वहां से जोधपुर आकर कुछ दिन बाद देहरादून लौट गए ।
इसी वर्ष कुछ कारणों से महाराजा का 'इम्पीरियल कैडेट कोर' का शिक्षा - काल बढ़ा दिया गया और रैजीडेंट मेजर अंकन के बाद रेज़ीडेंट लैफ्टिनेंट कर्नल जैनिंग्स (R. H. Jennings ) राज्य के कार्य की देख भाल करने लगा । वैशाख बदि (अप्रेल) में साहबजादा हमीदुज़्ज़फ़रखाँ यहां पर 'जूनियर मैंबर' नियुक्त हुआ और मारवाड़ और जयसलमेर राज्यों के बीच अपराधियों के लेन-देन के विषय की संधि की गई ।
१. इसी वर्ष ( वि० सं० १६५६ = ई० स० १६०२ में ही ) आप अपने चचा महाराजा प्रतापसिंहजी के गोद चले गए ।
२. वहां पर आपसे कश्मीर, बड़ोदा, रीवां, अलवर और बूंदी के नरेशों ने भेट की ।
३. इस वर्ष 'सीनियर - मैंबर' पण्डित सुखदेवप्रसाद काक सी. प्राइ. ई. और ठाकुर जससिंह, कमांडेंट, जोधपुर ' लान्सर्स' 'सरदार बहादुर' (O. B. E. ) बनाया गया ।
४. यह भारत - गवर्नमेंट से मांग कर बुलवाया गया था ।
५. यह संधि ई० स० १८६१ की बीकानेर और जयसलमेर के बीच की संधि के अनुसार ही थी ।
( ए कलैक्शन ऑफ ट्रीटीज़ ऐंगेजमेंट्स ऐण्ड सनट्स ( १६०६ ), भा० ३, पृ० १४६ | )
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