SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 508
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ महाराजा मीमसिंहजी करली और साथ ही सिंधी इन्द्रराज को देछू में इकट्ठे हुए सरदारों को मारवाड़ से बाहर निकाल देने की आज्ञा दी । उन दिनों तिंवरी के पुरोहित भी सरदारों से मिले हुए थे । इसीसे इन्द्रराज ने उनके वहाँ पहुँच उनसे बीस हजार रुपये दण्ड के वसूल किए और इसके बाद आगे बढ़ सरदारों का पीछा किया । उसको इस प्रकार अपने पीछे लगा देख वे लोग गोडवाड़ की तरफ़ होते हुए मेवाड़ में चले गए । इस काम से छुट्टी मिलते ही इन्द्रराज ने मरहटों के चढ़े हुए रुपये देकर उनसे साँभर, परबतसर, आदि के परगने वापस लेलिए और फिर जालोर पहुँच, वि० सं० १८६० की सावन सुदि ७ (ई० स० १८०३ की २६ जुलाई) के आक्रमण में, वहाँ के नगर पर अधिकार करलियौ । इससे किले वालों का बाहरी सम्बन्ध बिलकुल टूट गया और थोड़े ही दिनों में रसद आदि की कमी होजाने से मानसिंहजी को किला छोड़ कर निकल जाने का इरादा करना पड़ा । परन्तु इसी समय देवनाथ नाम के एक योगी ने उन्हें कुछ दिन और धैर्य रखने की सलाह दी । यद्यपि उस समय किले में रसद के न रहने से भीतर वालों को हर बात का कष्ट था, तथापि मानसिंहजी ने योगी के कथन का विश्वास कर, कुछ दिन के लिये, किला छोड़कर निकल जाने का विचार स्थगित करदिया । वि० सं० १८६० की कार्तिक सुदि ४ (ई० स० १८०३ की १९ अक्टोबर) को जोधपुर में महाराजा मीमसिंहजी का स्वर्गवास हो गया । इस समाचार के जालोर पहुँचते ही भंडारी गंगाराम और सिंघी इन्द्रराज ने, महाराजा भीमसिंहजी के पीछे पुत्र न होने से, वह चलता हुआ युद्ध तत्काल बंध करदिया । १. धीरजमल ने लांबियां और रास पर पहले ही अधिकार कर लिया था और इस समय वह नींबाज को घेरे था। परन्तु नींबाज-ठाकुर के पुत्र के महाराज से क्षमा मांग लेने पर केवल पीपाड़ जब्त किया जाकर बाकी की जागीर उसे लौटा दी गई। २. वि० सं० १८४७ (ई० स० १७६०) में, महाराजा विजयसिंहजी के समय, ये परगने, रुपयों की एवज़ में, मरहटों को सौंपे गए थे। ३. इसी आक्रमण में सिंघी बनराज मारा गया था। जालोर से मिले लेख में भी उसका सावन सुदि ७ के झगड़े में मारा जाना लिखा है । ४. पीठ में फोड़ा निकलने से इनका स्वर्गवास हुआ था। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034553
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1938
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size369 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy