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________________ मारवाड़ का इतिहास इसी वर्ष महाराजा भीमसिंहजी ने सिंघी अखैराज से अप्रसन्न होकर उसे कैद करदिया । इससे जालोर का घेरा शिथिल पड़गया । इसके बाद वि० सं० १८५८ ( ई० स० १८०१ ) में जिस समय महाराजा भीमसिंहजी जयपुर - नरेश प्रतापसिंहजी की बहन से विवाह करने को पुष्करे गए, उस समय मानसिंहजी ने चुपचाप जालोर के क़िले से निकल पाली नगर को लूट लिया । इसकी सूचना मिलते ही महाराज की तरफ़ से सिंघी चैनकरण और बलूंदा-ठाकुर चांदावत बहादुरसिंह उनको पकड़ने को चले । उन्होंने साकदड़ा स्थान पर पहुँच मानसिंहजी को घेर लिया । उस समय 1 उन ( मानसिंहजी ) के साथ थोड़ीसी सेना होने से सम्भव था कि वह पकड़ लिए जाते, परन्तु उनके साथ के कुछ वीरों ने, राजकीय सेना को सम्मुख - युद्ध में फँसा कर, उनको जालोर पहुँच जाने का मौक़ा देदिया । इस घटना के बाद सिंघी बनराज को फिर जालोर पर घेरा डालने की आज्ञा दी गई । इसी वर्ष सरदारों में नाराज़ी फैल जाने से वे कालू नामक गाँव में इकट्ठे होकर आस-पास के प्रदेश में उपद्रव करने लगे । इस पर महाराज की आज्ञा से भंडारी धीरजमल ने वहां पहुँच उन्हें कालू से खदेड़ दिया । अगले वर्ष ( वि० सं० १८५६ = ई० स० १८०२ में ) सरदारों के षड्यंत्र से महाराज का दीवान जोधराज, अपने घरमें सोई हुई हालत में, मारडाला गया । इससे क्रुद्ध होकर महाराज ने उवा, आसोप, चंडावल, रास, रोयट, लांबियाँ और नींबाज के ठाकुरों की जागीरें जब्त ९. यद्यपि वि० सं० १८४७ ( ई० स० हो गया था, तथापि मसूदा, खरवा महाराज का ही शासन था । १७६० ) में ही अजमेर पर मरहटों का अधिकार सुमेल, भिणाय और पिशांगण पर उस समय तक २ ख्यातों में इस घटना का समय वि० सं० १८५८ की आषाढ सुदि १४ ( ई० स० १८०१ की २४ जुलाई ) लिखा है । ३. उस समय यही महाराज की जालोर - स्थित सेना का सेनापति था । ४. ख्यातों में लिखा है कि उस समय खेजड़ला ठाकुर के भाई भाटी जोघसिंह ने मानसिंहजी से निवेदन किया कि आप तो जालोर चले जायँ और विपक्ष की सेना के मुकाबले का भार हम लोगों पर छोड़ दें । ५. यद्यपि इस षड्यंत्र में पौकरन, रीयां आदि के और भी अनेक सरदार शामिल थे, तथापि वे लोग बाद में इससे अलग हो गए थे । ३६८ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034553
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1938
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size369 MB
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