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________________ मारवाड़ का इतिहास ३१. महाराजा भीमसिंहजी यह महाराजा विजयसिंहजी के पौत्र और भोमसिंहजी के पुत्र थे, परन्तु इनके बड़े चचा फ़तैसिंहजी और पिता भोमसिंहजी का स्वर्गवास (इनके पितामह) महाराजा विजयसिंहजी के जीतेजी हो जाने से, वि० सं० १८५० की आषाढ सुदि १२ ( ई० स० १७६३ की २० जुलाई) को, यह अपने दादा के उत्तराधिकारी हुए । इनका जन्म वि० सं० १८२३ की आषाढ सुदि १२ ( ई० स० १७६६ की १९ जुलाई) को हुआ था । जिस समय महाराजा विजयसिंहजी का स्वर्गवास हुआ, उस समय यह अपना विवाह करने के लिये जयसलमेर गए हुए थे; परन्तु उक्त सूचना के मिलते ही, पौकरन-ठाकुर सवाईसिंह के साथ, जोधपुर आकर यहाँ की गद्दी पर बैठे । इसी बीच इनके चचा जालिमसिंह और चचेरे भाई मानसिंहजी भी जोधपुर के करीब पहुँच चुके थे ँ । परन्तु भीमसिंहजी के किले पर चढ़ जाने के कारण उन्हें, कूँपावत और मेड़तिया सरदारों को साथ लेकर, जोधपुर से लौट जाना पड़ा । इसके बाद उन्होंने मारवाड़ में लूट-मार शुरू की । परन्तु शीघ्र ही महाराजा भीमसिंहजी ने उनके उपद्रव को दबाने के लिये एक सेना भेजदी । यह देख जालमसिंह गोडवाड़ की तरफ़ चला गया और मानसिंहजी ने जालोर के सुदृढ़ दुर्ग का आश्रय ग्रहण किया । १. ख्यातों में भीमसिंहजी का जयसलमेर से पौकरन होते हुए, आषाढ सुदी ६ (१७ जुलाई ) को जोधपुर के किले में पहुँचना लिखा है । २. एक स्थान पर इनका जन्म वि० सं० १८३३ की आश्विन सुदि १२ को होना लिखा है । परन्तु जब इनके पिता का देहान्त वि० सं० १८२६ में ही होगया था, तब यह जन्म संवत् कैसे सही हो सकता है । ३. महाराजा विजयसिंहजी के स्वर्गवास की सूचना पाते ही ज़ालिमसिंह और मानसिंहजी दोनों जोधपुर आकर नगर के बाहर शेखावतजी के तालाब पर ठहरे थे; क्योंकि सरदारों ने उन्हें किले में जाने से रोक दिया था । उस समय चांपावत - सरदार और उनके पक्ष के अन्य कई सरदार भी भीमसिंहजी के पक्ष में थे । ४. किसी-किसी ख्यात में ज़ालिमसिंह का सोजत पर अधिकार कर लेना लिखा है । ३६६ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034553
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1938
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size369 MB
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