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________________ मारवाड़ का इतिहास वि० सं० १८२३ के कार्मिक ( ई० स० १७६६ के नवम्बर ) में महाराज ने नाथद्वारे की यात्रा की और इनके सेनापतियों ने इधर-उधर के सरकश जागीरदारों को दबाकर उनसे दण्ड के रुपये वसूल किए। वि० सं० १८२४ ( ई० स० १७६७ ) में महाराज ने पुष्कर की यात्रा की । वहीं पर इनकी मित्रता भरतपुर के ( जाट ) नरेश जवाहरसिंहजी से हुई । पहले लिखा जा चुका है कि जयापा की नागोर की चढ़ाई के समय जयपुर-नरेश माधवसिंहजी ने महाराज का साथ देने से इन्कार कर दिया था। इसी से यह उनसे नाराज थे । इसलिए इस वर्ष जब जवाहरसिंहजी और जयपुर-नरेश के बीच मनोमालिन्य हुआ, तब महाराज ने भरतपुर वालों का साथ दिया । इसके बाद यह देवलिये तक जवाहरसिंहजी के साथ जाकर वहां से लौटते हुए सांभर और मारोठ होकर मेड़ते में कुछ दिन ठहर गए । वि० सं० १८२७ ( ई० स० १७७० ) में मेवाड़ के महाराना अड़सी (अरिसिंह) जी, और उनके भतीजे ( महाराना राजसिंहजी द्वितीय ) के पुत्र रत्नसिंह व उसके पक्ष के सरदारों के बीच झगड़ा उठ खड़ा हुआ । इस पर महाराना ने महाराजा विजयसिंहजी से सहायता मांगी । महाराज ने तत्काल अपनी राठोड़-सेना मेज कर मेवाड़ का उपद्रव शांत कर दिया । इससे प्रसन्न होकर महाराना अडसीजी ने, आगे भी समयसमय पर होने वाले मेवाड़ के उपद्रवों को इसी प्रकार दबाने में सहायता देने की प्रतिज्ञा करवा कर, अपने राज्य का गोड़वाड़ का प्रांत महाराजा विजयसिंहजी को दे दिया । उस समय से ही यह प्रांत मारवाड़ राज्य में मिला लिया गया है। १. ख्यातों में लिखा है कि जिस समय जवाहरसिंहजी जयपुर राज्य में होकर भरतपुर की तरफ़ लौट रहे थे, उस समय कछवाहों ने उन पर पीछे से हमला कर दिया । इससे दोनों दलों के बीच घमसान युद्ध हुआ । इस यात्रा में जोधपुर की कुछ सेना भी भरतपुर वालों के साथ थी। इसके बाद जयपुर वालों ने भरतपुर-नरेश को पहुंचा कर लौटती हुई जोधपुर की सेना पर आक्रमण करने का प्रबन्ध किया । परंतु इसी बीच जयपुर-नरेश माधवसिंहजी के स्वर्गवास हो जाने से वे सफल न हो सके। २. किसी किसी ख्यात में लिखा है कि रत्नसिंह के पक्ष वालों ने भी फ़ौज का खर्च देने की प्रतिज्ञा कर महाराज से सहायता मांगी थी। परंतु महाराज ने ऐसा करना उचित न समझा। ३. यद्यपि 'राजपूताने के इतिहास' में जोधपुर-नरेश द्वारा महाराना को दी गई सहायता का उल्लेख छोड़ दिया गया है, तथापि महाराना अड़सीजी के स्वहस्ताक्षरों से लिखे महाराजा Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034553
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1938
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size369 MB
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