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________________ महाराजा विजयसिंहजी इसके बाद महाराजा ने जावले के ठाकुर बदनसिंह को मेड़ते में कैद करे उसकी जागीर जब्त कर ली । वि० सं० १८२२ ( ई० स० १७६५ ) में महादजी ( माधवराव ) सिंघिया के फिर मारवाड़ पर चढ़ाई करने की सूचना मिली । इस पर महाराजा ने तीन लाख रुपये देकर उसे रोक दिया । परंतु फिर भी बागियों का मुखिया चांपावत सरदार खानूजी नामक मरहटे को अपनी सहायता के लिये चढ़ा लाया । इसकी सूचना मिलते ही महाराजा की सेना ने आगे बढ़ उसका सामना किया । युद्ध होने पर शत्रुदल की हार हुई | इससे मरहटे अजमेर की तरफ़ चले गए और चाँपावतों को सांभर की तरफ़ भागना पड़ा । 1 इसी वर्ष महाराज ने गायों की चराई पर लगने वाले कर ( घासमारी ) को उठा कर जागीरदारों पर 'रेखबाब' नामक कर लगाया । इसी वर्ष महाराजा विजयसिंहजी वैष्णव ( नाथद्वारे के गुसाइयों के ) संप्रदाय के अनुयायी हो गए, और इन्होंने अपने राज्य में मांस और मदिरा का प्रचार बिलकुल रोक दियो । इन्होंने ही जोधपुर नगर में बालकृष्णजी का नया मन्दिर बनवाया था । १. कुछ काल बाद आउवे के ठाकुर की सिफारिश से क़ैद से चला गया। २. कहते हैं कि एकबार आसोप ठाकुर ने अपने गांव से, बोरे में भरकर, बकरे का मांस मंगवाया था । परंतु जिस ऊंट पर वह बोरा बन्धा था, वह ऊंट नगर में आकर किसी तरह चमक गया और घबराकर उछल-कूद मचाने लगा। इससे बकरे का कटा हुआ सिर बोरे से निकलकर बाहर आ पड़ा। जब इस घटना की सूचना महाराज को मिली, तब इन्होंने ठाकुर को बुलाकर उससे अपनी आज्ञा का उल्लंघन करने का कारण पूछा । परंतु उसने काली ऊन का एक गोला पेश कर निवेदन किया कि वास्तव में यह गोला ही बोरे से निकलकर बाज़ार में गिर पड़ा था और सम्भवतः लोगों ने इसी को बकरे का सिर समझ यह शिकायत की है इस प्रकार की बात बनाकर ठाकुर को अपना बचाव करना पड़ा । महाराजा विजयसिंहजी ने कसाइयों की जीविका बन्द हो जाने से उन्हें मकानों पर पत्थर की पट्टियां आदि चढ़ाने का काम सौंपा था। तब से अब तक उनके वंशज यही काम करते और चंवालिए कहते हैं । । एकबार राजकीय सेना के एक मुसलमान सैनिक ने एक बैल को शस्त्र से ज़ख्मी कर दिया । इसकी सूचना पाकर जब नगर का कोतवाल उसे पकड़ने को गया, तब सारे ही यवन - सैनिक बदल गए। यह देख लोगों ने महाराज को समझाया कि ऐसी हालत में अपराधी का अपराध क्षमा कर देना ही युक्तिसंगत है। अगर ऐसा नहीं किया जायगा तो सारी की सारी यवन-सेना नौकरी छोड़कर चली जायगी और इससे सरदारों को फिर से उपद्रव करने का मौका मिल जायगा । परंतु महाराज ने इस सलाह के मानने से इनकार कर दिया और अपने नफे-नुकसान की परवा न कर अपराधी और उसका साथ देने वालों को कठोर दण्ड दिया । ३८१ छूट जाने पर यह रूपनगर Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034553
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1938
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size369 MB
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