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________________ महाराजा अजितसिंहजी इनके विरुद्ध बराबर षड्यंत्र करने लगा । एक-दो बार तो उसने महाराज के मार डालने या पकड़ लेने की कोशिश भी की', परंतु इसमें उसे सफलता नहीं हुई । ___ अंत में (अब्दुल्लाखाँ ) कुतुबुल्मुल्क के समझाने से पौष सुदी ३ (१३ दिसंबर) को स्वयं बादशाह उसे साथ लेकर महाराज के डेरे पर आया, और घंटे-भर से भी अधिक समय तक मेल-मिलाप की बातें करता रहा । इस पर दूसरे दिन महाराज भी दरबार में उपस्थित हुए । इस प्रकार एकबार फिर इनके आपस में मेल हो गयाँ । इसके बाद माघ बदी २ (२८ दिसम्बर ) को बादशाह ने इन्हें 'राजराजेश्वर' की उपाधि देकर गुजरात की सूबेदारी दी। १. एकबार बादशाह ने सोचा कि उसके शिकार से लौटते हुए वज़ीर के मकान के पास पहुँ चने पर जिस समय महाराज ( जिनका पड़ाव उसी के मकान के पास था ) अपने खेमे से निकलकर सत्कार के लिये सामने प्रावें, उस समय उन्हें पकड़ लिया जाय । परन्तु यह बात प्रकट हो जाने से महाराज हुसैनअली के मकान पर जाकर खड़े हो गए । इससे बादशाह की उधर आने की हिम्मत ही नहीं हुई। इसी प्रकार स्वयं महाराज द्वारा अपने विश्वासपात्र सरदारों को लिखे गए उस समय के पत्रों में भी बादशाह की तरफ़ से इनके विरुद्ध किए गए षड्यंत्रों का उल्लेख मिलता है । उन पत्रों में महाराज ने जयपुर-नरेश जयसिंहजी का भी अपने विरुद्ध बादशाह को भड़काना सूचित किया है । 'अजितोदय' में भी महाराज को मारने के लिये बादशाह द्वारा षड्यंत्रों के रचे जाने का उल्लेख मिलता है । ( देखो सर्ग २७, श्लो. ३-५)। २. 'लेटर मुगल्स' में लिखा है कि पौष बदी १४ (६ दिसम्बर ) को महाराजा अजितसिंहजी और शाही तोपखाने के नायक (बीका हज़ारी) के बीच लड़ाई छिड़ गई । यह लड़ाई तीन घंटे तक जारी रही, और इसमें दोनों तरफ के बहुत से योद्धा मारे गए । रात हो जाने पर जब झगड़ा शांत हुआ, तब बादशाह ने ज़फ़रखाँ को महाराज के पास भेजकर इस गलती के लिये क्षमा चाही । ( देखो भा० १, ३६३ )। ३. 'अजितोदय' सर्ग २७, श्लो० ७-११ और राजरूपक, पृ० २१२ । ४. लेटर मुग़ल्स, भा० १, पृ० ३६३-३६४ । ऊपर उद्धृत किए भादों सुदी ८ के स्वयं महाराज के पत्र में भी इन बातों का उल्लेख मिलता है। अजितोदय में लिखा है कि इसके बाद एक दिन बादशाह ने राजराजेश्वर महाराजा अजितसिंहजी को और कुतुबुल्मुल्क को किले में बुलवाकर मार डालने का प्रबन्ध किया। इसके लिये पहले से ही सशस्त्र सिपाही महल में छिपाकर बिठा दिए गए थे । परन्तु इसका भेद खुल जाने से ये दोनों वहाँ से सकुशल निकल आए। ( देखो सर्ग २७ श्लो. १२-१३)। _ 'लेटर मुगल्स' में इस घटना का संबंध केवल कुतुबुल्मुल्क से ही बतलाया है । ( देखो भा० १, पृ० ३५४-३५५ ) । ३१३ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034553
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1938
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size369 MB
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