SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 400
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मारवाड़ का इतिहास सम्मान किया, परंतु इनके मंत्री के साथ आकर मिलने के कारण वह मन ही मन इनसे नाराज हो गयो । यह देख इन्होंने भी बादशाही दरबार में जाना छोड़ दिया । परंतु आश्विन बदी १३ (११ सितंबर) को बादशाह ने, मेल करने की इच्छा से, खाँदौरों और सरबलंदखाँ को भेजकर इन्हें फिर अपने पास बुलवायाँ । इस पर महाराज और कुतुबुल्मुल्क अब्दुल्लाखाँ, दोनों एक ही हाथी पर सवार होकरें बादशाह के पास पहुँचे । बादशाह ने भी ऊपर से बड़ी प्रीति दिखलाई और वज़ीर की सलाह से बीकानेर का अधिकार भी महाराज को दे दिय । परंतु भीतरही - भीतर वह निजामुल्मुल्क, मीर जुमला और ऐतकादखाँ आदि अनेक अमीरों को मिलाकर इनके मारने का षड्यंत्र रचने लगा । यह देख इधर कुतुबुल्मुल्क ने अपने भाई को, जो उस समय दक्षिण में था, सारा हाल लिख भेजा और उधर बादशाह भी, जो सैयदों से पूरा पूरा द्वेष रखता था १. अजितोदय, सर्ग २६, श्लो० ३६-४७ । वि० सं० १७७५ की भादों सुदी ८ के दिल्ली से महाराज के लिखे दयालदास के नाम के पत्र में लिखा है कि भादों सुदी ७ को हम बादशाह से मिले । बादशाह भी हमसे बड़े आदर के साथ बाँह फैलाकर मिला और हमैं अपनी दाहनी तरफ सब से ऊपर खड़ाकर 'राजराजेश्वर' का खिताब, ख़िलात, घोड़ा, हाथी, माही मरातब, मोतियों की माला, जढ़ाऊ कटार, जड़ाऊ सरपेच १,००० सवार दुस्पा का इज़ाफ़ा और १ करोड़ दाम दिए । इसकी पुष्टि इसी तिथि के पंचोली अजबसिंह के नाम लिखे महाराज के पत्र से भी होती है । २. अजितोदय में लिखा है कि महाराज किले से लौटते हुए मार्ग में कुतुबुल्मुल्क के मकान पर ठहरे थे (देखो सर्ग २६, श्लो० ४६ ) परन्तु किसी ने इसकी सूचना बादशाह को दे दी । इससे बादशाह इनसे और भी अप्रसन्न हो गया । ( देखो सर्ग २७, श्लो० २ ) । ३. किसी-किसी तवारीख में बादशाह का महाराज के द्वारा वज़ीर से मेल करने की इच्छा प्रकट करना भी लिखा है । ४. इस प्रकार महाराज को अकेले अब्दुल्लाखाँ के हाथी पर सवार होते देख नींबाज़ का ठाकुर अमरसिंह उनके पीछे चढ़ बैठा । उसी दिन से सरदार लोग महाराज के पीछे बैठने लगे हैं । ५. महाराज के, सिकदार दयालदास के नाम लिखे, वि० सं० १७७५ की पौष बदी ४ के पत्र में लिखा है कि बादशाह ने इन्हें खिलप्रत, मोतियों की माला, जड़ाऊ कलगी और एक करोड़ दाम देकर इनके मनसब में एक हज़ार सवार दुस्पा की वृद्धि की। इसके अलावा अहमदाबाद का सूबा देने का भी हुक्म दिया । ६. 'लेटर मुगुल्स' भा० १, पृ० ३४८-३५१ । ३१२ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com
SR No.034553
Book TitleMarwad Ka Itihas Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVishweshwarnath Reu
PublisherArcheaological Department Jodhpur
Publication Year1938
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size369 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy